Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
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(३५)
२४. श्री महावीर भगवाननी स्तुति :
मळ्या आजे मारा, भव भव तणा पुण्य उदये, समुद्धर्ता स्वामी, त्रि-जगजनना कंईक समये; मने भापी ज्ञाना-दिक गुण गुणी किंकर नकी महावीरस्वामी चरम जिन तारो भव थकी.
चैत्यवंदन : सिद्धारथ सुत वंदिये, त्रिशलानो जायो; क्षत्रिय कुंडमां अवतया, सुर नरयति गायो ॥१॥ मृगपति लंछन पाउले, सात हाथनी काया, बहोतेर वरसनु आउखु, वीर जिनेश्वर राया ॥२॥ खिमाविजय जिनरायना मे, उत्तम गुण अवदात, सात बोलथी वर्णव्या, पद्मविजय विख्यात ॥३॥
स्तवन :
बीरजी सुणो मेक विनंति मोरी; वात विचारो तुमे धणी रे, वीर मने तारो महावीर मने तारो, भवजल पार उतारोने रे ॥१॥
वीरजी....
परिभ्रमग में अनंता रे कीधां, हजुये न माग्यो छेडलो रे। तुमे तो थया प्रभु सिद्ध निरंजन, अमे तो अनंता भव भम्या रे ॥२॥ तमे अमे वार अनंति रे वेला, रमीया संसारी पणे रे । तेह प्रीत जो पूरण पालो; तो अमने तुम सम करो रे ॥३॥ वीरजी... तुम सम अमने जोग न जाणो, तो कांई थोडं दीजीभे रे, भवोभव तुम चरणोनी सेवा; पामी अमे घj रीझीये रे ॥॥
वीरजी....
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