Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 43
________________ (३७) चैत्यवंदन : श्री सीमंधर वीतराग, त्रिभुवत तुमे उपगारी। श्री श्रेयांस पिता कुले, बहु शोभा तुमारी ॥१॥ धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी। वृषभलांछने विराजमान, वंदे नरनारी ॥२॥ धनुष पांचशे देहडी), सोही सोवन वान । कीर्तिविजय उवज्झायनो, विनयधरे तुम ध्यान ॥३॥ स्तवन : सुणो चंदाजी ! सीमंधर परमातम पासे जाजो, भुज विनतडी, प्रेमधरीने अणिपरे तुमे संभळावजो ॥१॥ सुणो.... जे ऋण भुवननो नायक छ, जस चोलठ इन्द्र पायक छ, नाण दरिसण जेहने क्षायक छ ॥२॥ सुणो.... बार पर्षदामांहि बिराजे छ, जस चोत्रीश अतिशय छाजे छे गुण पात्रीश वाणीमे गाजे छे ॥३॥ सुणो...... भविजनने जे पडिबोहे छे, तुम अधिक शीतल गुण सोहे छे, रुप देखी भविजन मोहे छे ।।४॥ सुणो...... तुम सेवा करवा रसियो छु, पण भरतमां दूरे वसियो छु। महामोहराय कर फसियो छु ॥५॥ सुणो..... पण साहिब चित्तमा धरियो छे तुम आणा खड्ग कर प्रहिमो छे, पण काईक मुजथी डरियो छे ॥६॥ सुणो..... निन उत्तम पूंठ हवे पूरो, कहे पद्मविजय थाऊं शूरो; तो वाधे मुज मन अति नूरो ।।७॥ सुणो.......

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