Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 47
________________ (४१) समकित पामी अंतरजामी, माराधो कांत रे, स्याद्वाद पंथे संचरता, आवे भवनो अंत ॥६॥ अव.... सत्तर चोराणुये सुदि चत्रीये, बारसे बनावी रे, सिद्धचक्र गाता सुख संपत्ति, चालीने घेर भाषी ॥७॥ अष... उदयरत्न वाचक जंपे; जे नरनारी चाले रे, भवनी भावड ते भांजीने, मुक्तिपुरीमा म्हाले रे ॥८॥ अथ.... थोय : अरिहंत नमो वळी सिद्ध नमो, आचारज-वाचक-साहु-नमो। दर्शन-ज्ञान-चारित्र नमो, तप अ सिद्धचक्र सदा प्रणमो॥ 888

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