Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
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(३९)
स्तवन :
शेत्रुंजा गढना वासी रे, मुजरो मानजो रे, सेवक नी सुणी, वातो रे, दिलमां धारजो रे, प्रभु में दीठो तुम देदार,
आज मुने उपन्यो हरख अपार, साहिबानी सेवा रे,
भव-दुःख भांजशे रे, दादाजीनी सेवा रे, शिवसुख आपशे रे ॥ १ ॥ अक अरज अमारी रे, दिलमां धारजो रे, चोराशी लाख फेरा रे, दूर निवारजो रे, प्रभु मने दुर्गति पडतो राख
मने, दरिण वहे दाख ||२|| साहिबानीं. दौलत सवाई रे, सोरठ देशनी रे, बलिहारी हुं जाऊं रे, प्रभु तारा वेशनी रे, प्रभु तारुं रुडुं रुप, मोह्या सुरनर वृंद ने भूप ॥ ३ ॥ साहिबानी....
तीरथ न कोई रे, शत्रुजा सारखं रे, प्रवचन पेखीने कीधुं, में तो पारखु रे, ऋषभने जोई जोई हरखे जेह, त्रिभुवन लीला पामे तेह || ४ || साहिबानी सेवा रे...... भवोभवहुं मांगे रे, प्रभु तारी सेवना रे,
भावन भांगी रे, जगमां जे बिना रे,
प्रभु मारा पूरो मनना कोड,
भेम कहे उदय रतन कर जोड ||५|| साहिबानी ...
थोय :
श्री शत्रुंजय आदि जिन भग्वा, पूरव नव्याणुं वारजी, अनंतलाभ इहां जिनवर जाणीं, समोसयी निरधारजी । विमल गिरीवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्ध्या, भेकपो आठ गिरीनामजी ॥
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