Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
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(३८)
थोय :
श्री सीमंधर सेवित सुरवर, जिनवर जग जयकारीजी, धनुष पांचशे कंचनवरणी, मूरति मोहनगारीजी । विचरंता प्रभु महाविदेहे, भविजनने हितकारीजी; प्रहउठी नित्य नाम जपीजे, हृदय कमलमां धारीजी ॥ १ ॥
२६. श्री सिद्धाचलजीनी स्तुति :
पूर्णानन्दमयं महोदयमयं कैवल्यचिद्दग्मय; रूपातीतमयं स्वरूपरमणं स्वाभाविकी - श्रीमयम् । ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं स्याद्वाद - विद्यालयम् ; श्री सिद्धाचल- तीर्थराज मनिशं वन्देऽहमादीश्वरम् ॥१॥
चैत्यवंदन :
श्री शत्रुंजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गतिवारे, भावधरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे ॥ १॥ अनंत सिद्धनो भेह ठाम, सकल तीर्थनो राय, पूर्वनवाणु ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय ॥२॥ सूरज कुण्ड सोहामणो, कवड जक्ष आभिराम, नाभिराया कुल मंडणो, जिनवर करूं प्रणाम ||३||
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