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* श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ॐ
श्री चोवीश जिनना प्राचीन स्तुति-चैत्यवंदन-स्तवन
-: थोयादि संग्रह :
1३॥
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4Eयाग
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शान दियाम्या मोक्ष સા વિંધાયા વિમુક્તયે स्थापना पाइपमारपOD
-संपादकप. पू. मुनिराज श्री अरुगविजयजी महाराज
* कार्यालय-८५/२४, 'श्याम सदन, ६ठे माळे अफ. रोड, मरिन ड्राइव,
मुंबई-४००.०२. फोन : ३१४९७८/२९१६२७ HOROSKOP STOR
I LOR
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ॐ श्री महावीर स्वामीने नमः * श्री वृद्धि-धर्म-भक्तिसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः ॐ श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण केन्द्र
केन्द्र संस्थापकअ. सौ. श्रीमति शान्ताबेन गुलाबचंद जैन सलाहकार समिति-- ॐ समाज रत्न जयन्तिलाल रतनचंद शाह
श्री दीपचंदभाई एस. गार्डी, बार-ओट-लो. _ प्रसिद्ध तत्वचिंतक श्री किरणभाई
8. प्रोफेसर रमणलाल चि. शाह ट्रस्टी मंडळ--
प्रमुख-हिमांशु सुरेन्द्रभाई महेता
ट्रस्टी ५३७, चोपाटी चेम्बर, ५ मे माळे, ब्लोक नं. १०, - चोपाटी, मुंबई-४०० ००७. फोन : ३८९७ ३४ 8 सेक्रेटरी-नरेन्द्र उदयचंद जैन ___ट्रस्टी ८५/२४, श्याम सदन ६ ठे माळे, अफ. रोड,
मरीन ड्राईव, मुंबई-४००००२.
फोन : ३१३९ ७८/२९ १६२७ ( ॐ खजानची-नीतिन रमणलाल पटणी 2 ट्रस्टी १६५, लुहार चाल, ५-अमृत निवास, ३ जे माळे,
मुंबई-४००००२. फोन : २९७० ९९ W ट्रस्टी महेश महासुखलाल शाह
रुपम ट्रेडर्स, १२४/४२, प्रिन्सेस स्ट्रीट,
मुंबई -४०० ००२. फोन : ३१ २२ ९८/३१५५ ४२ ४ टूस्टी- मयुर नटवरलाल कापडीया
२-सी केसल, २९, चोपाटी, सी फेस, १ ले माळे,
चोपाटी, मुंबई-४०० ००७. फोन : ३५२९६८. GROSSEISTIGIIGA BOSHLAGALOGHRIST
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जन्म २७-९-१९३८]
[स्वर्गवास ६-६-१९७९ स्व. श्री कीर्तिकुमार प्राणलाल दोशी
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उदारदिल धर्मप्रिय सुसंस्कारी सौजन्यमूर्ति स्व. श्री कीर्तिकुमार प्राणलाल दोशी
ॐ नी स्मृतिमा सस्नेह समर्पण - प्राणलाल कानजीभाई दोशी कंचनबेन प्राणलाल दोशी डॉ. दिनेश प्राणलाल दोशी जयश्री दिनेशकुमार दोशी
शरदकुमार प्राणलाल दोशी भारती कीर्तिकुमार दोशी दर्शना, नीधि, विमल, कीर्तिलाल अवनी, दिनेशकुमार, दोशी परिवार
भावनगर निवासी (हाल मुंबई) तपस्वीनि बारव्रतधारी सुश्राविका अ. सौ. श्रीमती कंचनबेन प्राणलाल दोशी
अने
व्रतधारी, आराधक श्रावक श्री प्राणलाल कानजीभाई दोशी आदि दोशी परिवारना सौजन्यथी प्रस्तुत पुस्तिका श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण-केन्द्रे
छपावी प्रसिद्ध करी छे. 8 शुभं भवतु है
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स्व. चि. कीर्तिकुमार पाणलाल दोशी -: मधुर यादगार संस्मरणो :. संस्कार नो सुंदर वारसो
हजु मने याद आवे छे... मारी बा अमने ज्यारे अमे नाना हता (लगभग ५ थी ६ वर्ष ना) त्यारे दहेरासरे दर्शन करवा जाय अथवा उपाश्रये व्याख्यान श्रवण करवा जाय, त्यारे भमने साथे लई जता. बा जेम करे तेम भमे पण करता. _ मारी बा मेमना भायुष्यना छल्ला वर्षामा घणां बिमार हता. छत्ता पण तेमने क्यारेय विभासणा ना पाचक्खाण छोड्या न होता. तेमनी हड़ता भेटली बधी हती के-डाक्टरोने अने ममने पण कही देता के सूर्यास्त पछी मारा मोढामां पाणी पग नाखता नहीं. मावी ताथी ममने पण मावा ना संस्कार मळ्या.
संस्कार नो वारसो वंश परंपरामा आपवो मे तो माता-पितानं कर्तव्य होय छे. कहेवाय पण छ के-'संस्कारी संतति एज साची संपति छे.।।
. कीर्शिकुमारने ममे बाल्यवयथी सारा संस्कार भाप्या. माख्यान क्या दर्शन-पूजा मां नियमित लई जता. गोवालिया कथी कोटमा म्यानमाला सांभळवा जq होय त्यारे कीर्तिपण ८-०. धागे तैयार थई,जतो. भने ममारी सह जोतो, क्यारेक मोडु थई जतु तो कीर्ति नाराज घेतो. माधी रीते एक नाना दाखला उपर थी समजायके में मारमा पूर्वजनक नो माराधक श्रदालु जीव हशे.
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जीवापिच्छन्ति जीवितं, न मरिजिउं" मा प्रमाणे भगवान महावीरस्वामीने बागमों मां कह्युं छे के "प्राणी मात्र जगतमां जीववा इ . कोई-पण मरवा नथी इच्छतु." माटे परदुःखोत्पादक प्रवृत्ति क्यारे पण करपी योग्य नथी. भावी पायांनी शिखामण अमे कीर्ति ने मापता.
भवाढीचौदशनो मे दिवस हतो, सवारे अमने मळया अने पगे लागवा कीर्ति बालकेश्वर ना घरे माग्यो. बाहर जवानी वात करी. अमे कहयु दिवस छता पाछा आवी जजो. रावना गाडी चलाववी नही. कीर्ति कहयु-भाई तमे बिल्कुल फिकर न करो, अमे फरीने वहेला आवी जइ. भाटलं कहीने कीर्तिमे विदाय लीधि . . कोने खबर के छेल्ली विदाय हशे..
के कलाक पछी समाचार भाव्या के लोणावळा जता अकस्मात थयो छे. बधा जल्दी भाषी जाओ....
' परन्तु मृत्यु कोई नी राह जोती नथी. अमे पहोंची ते पहेला तो कीर्ति चिरयात्रामे पहोंची चुकेलो. साथे रहेला शरदे समाचार भाप्या के दया अने करूणानी भावना थी एक माणसनुं जीवन बचाववा जवा गाडी अंडा खाडामां पडी गई भने आ बनाव बन्यो. कीर्तिकुमार समतापूर्वक नवकार महामंत्रनु स्मरण करता करता हसता मोढे गया...
__संस्कार ना वारसाए भावना जगाडी. . . .... चोवीश जिननी भक्ति विविध रीते स्तुति, चैत्यवंदन स्तवन-तथा योयादि द्वारा पण सुंदर रीसे करी. शकाय छ- माटे कीर्ति नी याद मां ममारा दोशी परिवार तरफथी प्रस्तुत पुस्तिका प्रसिद्ध कराई रही छे. माविक मारमानो प्रस्तुत पुस्तिकाना माध्यम थी प्रभुगुण भक्ति करीने नात्मकल्याणं साधो. भेज अभ्यर्थना. HD गाईन न्यु सोसायटी.
प्राणलाल के. दोशी.
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चोवीश तीर्थंकर प्रभुनी स्तुतिओ, चैत्यवंदन
स्तवन तथा थोयो
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१. श्री आदीश्वर भगवंतनी स्तुति :
जेणे कीधी सकल जनता नीतिने जाणनारी, त्यागी राज्यादिक विभवने जे थया मौनधारी; व्हेतो कीधो सुगम सबलो, मोक्षनो मार्ग जेणे, पंहुँ छु ते "ऋषभजिनने" धर्म धोरी प्रभुने ।
चैत्यवंदन :
भादि देव अलवेसरू, विनीतानो राय, नाभिराय कुलमंडणो, मरुदेवा माय ॥१॥ पांचसे धनुषनी देहडीओ प्रभु जी परम दयाल, चोरासी लाख पूर्वमुं, जस भायु सुविशाल ॥२॥ वृषभलंछन जिन वृषधरु मे उत्तम गुणमणी खाण,
तस पदपन सेवन थकी, लही अविचल ठाण ॥३॥ स्तवन :
प्रथम जिनेश्वर प्रणमीये...जास सुगंधी रे काय; कल्पवृक्ष परे तास, इन्द्राणी नयन जे, भुंगपरे लपटाय ॥१॥ प्रथम. रोग उरग तुज नवि नडे, अमृत जे मास्वाद ..
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( २ )
तेहथी प्रतिहत तेह, मानुं कोई नवि करे, जगमां तुमशुं रे बाद ॥२॥ विगर धोई तुज निरमली, काया कंचन वान;
महि प्रस्वेद लगार, तारे तुं तेहने, जे धरे ताहरु ध्यान ॥ ३ ॥ प्र. राग गयो तुज मन थकी, तेहमां चित्र न कोय,
रुधिर भामिषथी राग, गयो तुज जन्मथी दूध सहोदर होय || ४ || प्र. श्वासोच्छवास कमल समो, तुज लोकोत्तर वात;
देखे न आहार-निहार, चरमचक्षु धणी, मेहषा तुज अवदात ||५|| प्र. चार अतिशय मूलथी, भोगणीश देवना कीध;
कर्मखप्याथी अग्यार, चोत्रीश प्रेम अतिशया समवायांगे प्रसिद्ध || ६ || प्र जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग;
पद्मविजय कहे मेह, समय प्रभु पालजो जिम थाउं अक्षय अभंग ॥७॥
थोय :
आदि जिनवर राया, जास सोवन काया,
मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया । जगतस्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया, केवलसिरी राया, मोक्ष नगरे सिधाया ॥
२. श्री अजितनाथ भगवंतनी स्तुति :
जेने स्तवे सुरवरो बहु भक्ति भावे, योगीश्वरो सतत जेहनुं ध्यान ध्यावे, जेना अलौकिक गुणो न गणी शकाये, ते सेविये अजितनाथ विभु सदाये,
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(३)
चैत्यवदन :
भजितनाथ प्रभु अवतर्यो, विनीतानो स्वामी; जितशत्रु विजया तणो, नंदन शिव गामी ॥१॥ बोतेर लाख पूरब तणुं, पाल्यु जिणे माय; गज लंछन लछन नहिः प्रणमे सुर राय ॥२॥ साडा चारशे धनुषनी अ, जिनवर उत्तम देह; पाद पद्म तस प्रणमी, जिम लहीये शिव गेह ॥३॥
स्तवन :
प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदा, कांई प्रभु पाखे क्षण एक मने न सुहाय जो; ध्याननी ताली रे लागी नेहरुं, जलदघटा जीम शिवसुख वाहन दायजो. प्रीत......॥१॥ नेह घेलु मन मारु रे, प्रभु मलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुजजो; मारे तो आधार रे साहिब रावलो,
अंतरगतनुं प्रभु भागळ कहुं मुंजजो. प्रीत......॥२॥ साहेब ते साचो रे जगमां जाणीमे, सेवकना ते सहेजे सुधारे काज जो, अहवेते माचरणो केम करीने रहुं, बिरुद तुमारो तारण तरण जहाज जो ॥३॥ तारकता तुज माहे रे श्रवणे सांभळी, ते भणी हुँ माब्यो दीन
दयाल जो, तुज करुणानी लहेरे मुज कारज सरे, शुं घणुं कही जाण भागल
कृपाल जो ॥४॥ करुणा दृष्टी कीधी रे सेवक उपरे, भव भव भावठ भांगी भक्ति प्रसंग जो, मनवांछित फलीयां रे जिन भालंबने, कर जोडीने मोहन कहे मन रंग जो
प्रीतलडी... ॥५॥
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थोय :
विजया सुत बंदो, तेजथी ज्यु दिणंदो, शीतलता चंदो, धीरता गिरीदो, मुख जिम अरविंदो, जास सेवे सुरीदो, लहो परमानंदो, सेवना सुख कंदो ॥१॥
३. श्री संभवनाथ भगवाननी स्तुति :
आनंद मंगलकारी तुज मूर्ति साचे, मेघो जन्म निरखी भव्य मयूर नाचे, पुण्ये मळे विमल दर्शन माप केरा
दूर टळे त्वरित संभवनाथ फेरा, चैत्यवंदन :
सावथ्थी नयरी धणी, श्री संभवनाथ; जितारी नृप नंदनो, चलवे शिव साथ ॥१॥. सेना नंदन चंदने, पूजो नव अंगे। चारशे धनुषन देहमान, प्रणमों मन रंगे ॥२॥ साठ लाख पूरव तणुओं, जिनवर उत्तम आय।
तुरग लंछन पद पद्मने, नमतां शिवसुख थाय॥३॥ स्तवन :
संभव जिनवर विनति, अवधारो गुण ज्ञातारे । खामी नहि, मुज खिजमते, कदिये होशो फलदातारे ॥४॥
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(५)
कर जोडी उभो रहुँ, रात दिवस तुम ध्यानोरे । जो मनमां आणो नहि, तो शुं कहिले छानोरे ॥२॥ खोट खजाने को नहि, दीजीये वांछित दानोरे । करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानोरे ॥३॥ काल लब्धि मुज मति घणो, भाव लब्धि तुम हाथेरे । लडथडतुं पण गज बच्चु, गाजे गयवर सारे ॥४॥ देशो तो तुमही भला, बीजा तो नवि याचुरे । वाचक जश कहे सांइशुं, फळशे से मुज साचुरे ॥५॥
थोय :
संभव सुखदाता, जेह जगमां विख्याता ।
षट् जीवना त्राता, आपता सुखज्ञाता |
माता ने भ्राता, केवलज्ञान ज्ञाता, दुःख दोहग व्राता, जास नामे पलाता ॥१॥
४. श्री अभिनंदनस्वामीनी स्तुति :
संसार सागर विषे भमता जनोने । छे आपनु शरण भेक ज तारवाने । अर्पी सुबोध भवथी अमने उगारो । चोथा जिनेश विनति उरमां उतारो।
चैत्यवंदन :
नंदन संवर रायनो, चोथा अभिनंदन ।
कपि लंछन वंदन करो, भव दुःख निकंदन ॥ १ ॥
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सिद्धारथा जस मावडी, सिद्धारथ जिन राय । साडा अणशें धनुष मान, सुदंर जस काय ॥२॥ विनीता वासी वंदिये से आयु लख पचास । पूरव तस पद पद्मने, नमता शिवपूर वास ॥३॥
स्तवन :
अभिनंदन जिन दरिशन तरसीये, दरिशन दुर्लभ देवमत मत भेदे रे जो जई पूछीमे, सहु थापे महमेव, म.-१ सामान्ये करी दरिशन दोहिलु, निर्णय सकल विशेष, मदमें घेयो रे अन्धो किम करे, रवि शशी रुप विलेख, म.-२ हेतु विवादे हो चित्त धरी जोईये, अति दुर्गम नयवाद; आगमवादे हो गुरुगम को नहि मे सबलो विखवाद, भ.३ धाती डुंगर आडा मती घणा, तुज दरिशण जगनाथ; धीठाई करी मारग संचरु, सेंगु कोई न साथ; भ.-४ दरिशण दरिशण जो रटतो फिरूं, तो रण रोज समान; जेहने पिपासा हो अमृतपाननी, किम भांजे विषपान, म.-५. तरस न मावे हो मरण जीवनतणी, सीझे जो दरिशण काज;
दरिशण दुर्लभ सुलभ कृपा थकी, आनंदपन महाराज, अ.-. थोय :
संवरसुत साचो, जास स्याद्वाद वाचो; थयो हीरो जाचो, मोहने देई तमाचो, प्रभु गुणगण माचो, मेहने ध्याने रायो, जिनपद सुख साचो, भव्य प्राणी निकायो.
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५. श्री सुमतिनाथ प्रभुनी स्तुति :
वाणी जिनेन्द्र तुज अद्भुत जे सुणे छे, .. पीयूषने तृण समान ज ते गणे छे, मिथ्यात्व मोह हरनार कुबुद्धि कापो,
स्वामी ! हे सुमतिदेव ! सुबुद्धि आपो. चैत्यवंदन :
सुमतिनाथ सुहकरु, कौशल्या जस नगरी, मेघराय मंगला तणो, नंदन जितवयरी ॥१॥ क्रौंच लंछन जिन राजियो, अणसे धनुषनी देह, चालीस लाख पूरबत', आयु अति गुण गेह ॥२॥ सुमति गुणे करी जे भयो, तयों संसार अगाध,
तस पद पद्म सेवा थकी, लहो सुख भव्याबाध ॥३॥ स्तवन :सुमतिनाथ गुणझुं मिलीजी, वाधे मुज मन प्रीत । तेल बिंदु जिम विस्तरेजी, जल माहे भली रीत, सोभागी जिनशें लाग्यो अविहड रंग ॥१॥ सोभागी... सज्जनशु जे प्रीतडीजी, छानी ते न रखाय, परिमल कस्तुरीतणोजी, मही माहे महकाय ॥२॥ सोमागी .. अंगुलीये नवि मेरु ढंकाये, छाबडीये रवि तेज, अंजलिमां जिम गंग न माये, तिम मुज मन प्रभु हेज ॥३॥सोभागी.. हुमो छोपे नहि अधर अरुण जिम, खाता पानसुरंग, पीवत भर भर प्रभु गुण प्याला, तिम तुज मुज प्रेम अभंग॥४॥ सोभागी.. ढांकी ईक्षु फरालशुंजी, न रहे लहि-विस्तार, वाचक यश कहे प्रभु तणोजी, तिम मुज प्रेम प्रकार ॥५॥ सोभागी..
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(८)
थोय :
सुमति सुमतिदायी, मंगला जाय माई, मेरुने वली राई, ओर मेहने तुलाई; क्षय कीधा घाई, केवलज्ञान पाई; नहिं उणिम कांई, सेविये ते सदाई ॥१॥
६. श्री पद्मप्रभुस्वामीनी स्तुतिः
जेनी सुरम्य प्रतिमां हितबोध मापे, जैनी सुचारु नयनो चिरशांति थापे; सेवा भवोभव विषे पद्मप्रभु केरी,
होजो सदा जिम नडे नहि कर्म वेरी. चैत्यवंदन :
कोसंबीपुर राजियो, धर नरपति ताय, पद्मप्रभु प्रभुता मयी, सुसिमा जस माय ॥ १॥ त्रीश लाख पूरव तणं, जिन भायु पाली धनुष अढीशे देहडी, सबि कर्मने टाली ॥२॥ पद्म लंछन परमेश्वरू में, जिन पद पद्मनी सेव;
पद्मविजय कहे कौजिभे, भविजन सह नित्यमेव ।।३।। स्तवन :
पद्मप्रभु जिन जई अलगा रह्या, जिहांथी नावे लेखोजी, कागल ने मसि तिहां नवि संपजे, न चले वाट विशेषोजी,
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सुगुण सनेहारे कदिय न वीसरे ॥१॥ सु... ईहांथी तिहां जई कोई आवे नहि, जेह कहे संदेशोजी; जेहन मिलवुरे दोहिलं, तेहशुं नेह ते भाप किलेशोजी ॥२॥ सु... वीतराग शुं रे राग ते अक पखो, कीजे कवण प्रकारोजी; घोडो दोडे रे साहिब काजमां, मन नाणे असवारोजी ॥३॥ सु... साची भक्तीरे भावना रस कह्यो, रस हो तिहां दोभे रीझेजी%B होडाहोडेरे बेहु रस रीझथी, मनना मनोरथ सीझेजी ॥४॥ सु... पण गुणवंतारे गोठे गाजीभे, मोटा ते विश्रामोजी;
वाचक जश कहे अहीज भाशरो, सुख लहु ठामो ठामजी ॥५॥ सु... थोय:
अढीशे धनुष काया, त्यक्त मद मोह माया; सुसीमा जस माया; शुक्ल जे ध्यान ध्याया; केवल घर पाया, चामरादि धराया; सेवे सुर राया; मोक्ष नगरे सधाया ॥१॥
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७. श्री सुपार्श्वनाथ भगवंतनी स्तुति :
संसारमा रखडतां बहुकाळ मारो, . भेळे गयो प्रबर धर्म लह्यो न तारो, भाज मळ्यो प्रभु कदी नव नेह छोडूं, सेवा सुपाश्र्व जिननी करी कर्म तोडुं.
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(१०)
चैत्यवंदन : .
श्री सुपास जिणंद पाश, टाल्यो भव फेरो, पृथिवी माता उरे, जायो नाथ हमेरो ॥१॥ प्रतिष्ठित सुत सुंदरु, वाराणसी राय; वीश लाख पूरव तणु, प्रभुजीनु भाय ॥२॥ धनुष बशे जिन देहडी मे स्वस्तिक लंछन सार; पद पझे जस राजतो, तार तार भव सार ॥३॥
स्तवन :
श्री सुपास जिनराज, तुं त्रिभुवन शिरताज, आज हो छाजे रे, ठकुराई प्रभु सुज पदतणीजी ॥१॥ दिव्य ध्वनी सुरफुल, चामर छन्त्र अमूल; भाज हो राजे रे, भामंडल गाजे दुंदुभिजी ॥२॥ अतिशय सहजना चार, करम खप्याथी भग्यार; भाजे हो कीधा रे, ओगणीशे सुरगण भासुरिजी ॥३॥ वाणी गुण पांत्रीश, प्रातिहारज जगदीश. भाज हो छाजे रे, दीवाजे छाजे आठजी ॥४॥ सिंहासन अशोक बेठा माहे लोक,
माज हो स्वामीरे, शिवगामी वाचक जश थूण्योजी ॥४॥ थोय:
सुपास जिन वाणी. सांभले जेह प्राणी, हृदये पहेंचाणी, ते तया भव्य प्राणी, पांत्रीश गुण खाणी, सूत्रमा जे गुंथाणी, षट् द्रष्यशुं जाणी, कर्म पीले ज्युं धाणी ॥१॥
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(११) ८. श्री चंद्रप्रभ भगवंतनी स्तुति :
शीतांशुथी अधिक शीतल आप स्वामी, छो सूर्यथी अधिक पूर्ण प्रकाश शाली, छे आपनु अगम अद्भुत शुद्ध रूप,
चंद्रप्रभ प्रभु पढ़े प्रणमेज भूप । चैत्यवंदन :
लक्ष्मणा माता जनमीयो, महसेन जस ताय, उडुपति लंछन दीपत्तो, चंद्रपुरीनो राय ॥१॥ दश लाख पूरव आऊखं, दोढसो धनुषनी देह, सुर नरपति संवा कर, धरता अति ससनेह ।।२॥ चंद्रप्रभ जिन आठमां से, उत्तम पद दातार,
पद्मविजय कहे प्रणमीओ, मुज प्रभु पार उतार ॥३॥ स्तवन :
चंद्रप्रभु जिन साहिबारे, तमे छो चतुर सुजाण, मनना मान्या; सेवा जाणो दासनीरे, देशो पद निरवाण ॥१॥ आवो आवारे चतुर सुख भोगी, कीजे वात कांते अभोगी।
गुण गोटे प्रगटे प्रेम. म. ॥२॥ ओछं अधिकुं पण कहे रे, असंगायत जेह, म. आपे फल जे अण कह्यां रे, गिरओ साहिब तेह मः ॥२॥ दीन कह्या विण दानधीरे, दातानी वाधे माम, म. जल दीये चातक खीजवीरे, मेघ हआ तेणे श्याम. म. ॥३॥ पिऊ पिऊ करी तुमने जपुरे, हुं चातक तुमे मेह, म. अंक लहेरमां दुःख हरोरे, वाधे बमणो नेह म. ॥४॥ मोडुं वहेलुं आपq रे, तो शी ढील कराय, म. वाचक जश कहे जगधणीरे, तुम तूटे सुख थाय म. ॥५॥
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(१२)
थोय:
सेवे सुरवर वृंदा, जास चरणारविंदा, अट्टम जिन चंदा, चंद वर्णे सोहंदा, महसेन नृप नंदा, कापता दुःख दंदा, लंछन मिष चंदा, पाय मार्नु सेविंदा ॥१॥
९. श्री सुविधिनाथ स्वामीनी स्तुति :
देखी जिनेन्द्र तुज मूर्ति भमी भरेली, जेनी मळे न उपमां जगमां भलेरी, मारूं बने हृदय निर्मळ नीर जेवं,
तेवू करो सुविधिनाथ ! न जन्म लेऊ, चैत्यवंदन:
सुविधिनाथ नवमां नर्मु, सुग्रीव जस तात, मगर लंछन चरणे नमु, रामा रुडी मात ॥१॥ भायु बे लाख पूरब तणं, शत धनुषनी काय, काकंदी नयरी धणी, प्रणमुं प्रभु पाय ॥२॥ उत्तम विधि जेहथी लह्यो, तेणे सुविधि जिन नाम,
नमतां तस पद पद्मने, लहीमे शाश्वत धाम ॥३॥ स्तवन :
लघु पण हुँ तुम मन नवि माव॑ रे, जगगुरु तुममे दिलमां लावु रे, कुमने ए दीये शाबासीरे, कहो श्री सुविधि जिणंद विमासीरे ॥२१॥
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(१३) मुज मन अणुमांहे भगति छे झाझीरे, तेह दरीनो तुं छे मांझी रे, योगी पण जे वात न जाणे रे, ते भचरिज कुणथी हुओ टाणे रे ॥२॥ ल. अथवा थिरमांहे अथिर न मावे रे, मोटो गज दरपणमां आवे रे, जेहने तेजे बुद्धि प्रकाशी रे, तेहने दीजे से शाबाशी रे ॥३॥ ल. उर्ध्व मूल तरुअर अध शाखा रे, छंद पूराणे अहवी छे भाषा रे, अचरिज वाळे अचरिज कीधु रे, भगते सेवक कारज सीधु रे, ॥॥ल. लाड करी जे बालक बोले रे, माता पिता मन अमीयने तोले रे,
श्री नय विजय विघुधनो शिषरे, जश कहे मेम जाणो जगदीशरे.॥५॥ थोय :
नरदेव भावदेवो, जेहनी सारे सेवो, जेह देवाधिदेवो, सार जगमा ज्यु मेवो, जोता जग अहवो, देव दीठो न तेहवो, सुविधि जिन जेहवो, मोक्ष दे तत खेवो॥१॥
१०. श्री शीतलनाथ स्वामीनी स्तुति :
जे मुक्तिमा जई वस्था प्रभु देह त्यागी, जेना नमे चरण पंकज सर्व प्राणी, सेवा मलो सतत शीतलनाथ केरी,
छे भावना मन विषे दिनरात अधी, चैत्यवंदन:
नंदा दढरथ नंदनो, शीतल शीतलनाथ, राजा भहिलपुर तणो, चलवे शिव साथ ॥१॥
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(१४) लाख पूरवर्नु भाउखु, नेवु धनुष्य प्रमाण, काया माया टालीने, लह्या पंचम नाण ॥२॥ श्रीवत्स लंछन सुंदरुं , पद पद्म रहे जास, ते जिननी सेवा थकी, लहीसे लील विलास ॥३॥
स्तवन :
श्री शीतल जिन मोहे प्यारा...... 'भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिऊ के जिऊं हमारा ॥१॥ श्री शी.... ज्योतिशुं ज्योत मिलन जब ध्यावे. होवत नहि तब न्यारा; ... बांधी मुठी खुले भव माया, मिटे महाभ्रम भारा ॥२॥ श्री. शी.. तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटंब उदारा. तुम ही नजीक नजीक है सबही, ऋद्धि अनंत अपारा ॥३॥ श्री शी. विषय लगन की अगनी बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा; .. भई मगनता तुम गुण रस की, कुण कंचन कुण दारा ॥४॥ श्री शी. शीतलता गुण होर करत तुम, चंदन काह बिचारा; नामे ही तुम ताप हरत है, वांकु घसत घसारा. ॥५।। श्री शी. करहुं कष्ट जन बहुत हमारे, नाम तिहारो आधारा, जश कहे जनम मरण भय भांगो, तुम नामे भवपारा ॥६॥ श्री शी.
थोय :
शीतल जिन स्वामी, पुण्यथी सेव पामी: प्रभु भातमरामी, सर्व परभाव वामी, जे शिवगति गामी, शाश्वतानंद धामी; भवि शिवसुखकामी, प्रणमीमे शीशनामी ॥१॥
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(१५)
११. श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तुति :
संसारना त्रिविध तापवडे तप्यो छु, आधि-उपाधि वळी व्याधि वडे बळ्यो छु, भाव्यो जिनेन्द्र ! शरणे मुजने बचावो, श्रेयांसनाथ ! भवसागर पार लावो.
चैत्यवंदन :
श्री श्रेयांस अग्यारमां, विष्णु नृप ताय, विष्णु माता जेहनी, भेशी धनुषनी काय. ॥१॥ घरस चोराशी लाखनुं, पाल्युं जेणे आय, खड़गी लंछन पदकजे, सिंहपुरीनो राय ॥२॥ राज्य तजी दीक्षा वरीओ, जिनवर उत्तम ज्ञान, पाम्या तस पद पद्मने, नमतां अविचल थान ॥ ३ ॥
स्तवन :
तु बहु मैत्री रे साहिबा, मारे तो मन ओक, तुम विण बीजो रे नवि गमे, भे मुज म्होटी रे टेक... श्री श्रेयांस कृपा करो ... ॥१॥ मन राखो तुमे सवि तणां, पण किहां भेक मळी जाओ; ललचाभो लख लोकने, साथी सहेज न थाओ / श्री श्रेयांस ||२|| राग भरे जन मन रहो, पण तिहुं काल वैराग;
चित्त तुमारा रे समुद्रनो, कोई पामे ऐ वाग.. श्री श्रेयांस ॥३॥ मेहवा श्यं चित्त मेळ, केळन्युं पहेला न कांई, सेवक निपट अबूझ छे, निर्बहशो तुमे सांई श्री श्रेयांस ॥४॥
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निरागीशु रे किम मिले, पण मळबानो मेकांत; वाचक जश कहे मुज मिल्यो, भक्ते कामण तंत...श्री श्रेयांस ॥५॥
थोय :
विष्णु जस मात, जेहना विष्णु तात; प्रभुना अवदात, तीन भुवन में विख्यात; सुरपति संघात, जास निकट आयात; करी कर्मनों घात, पामीया मोक्ष सात ॥१॥
१२. श्री वासुपूज्य स्वामीनी स्तुति : सध्यानथी दुरित सर्व हणी विराजे, जे मुक्तिमा समय सादि अनंत भांगे; . आत्मस्वरूप रमतां सुख आपजोने, श्री वासुपूज्य ! जिनदेव ! दया करोने
चैत्यवंदन :
वासव वंदित वासुपूज्य, चंपापुरी ठाम, . वासुपूज्य कुल चंद्रा, माता जया नाम ॥२॥ महिष लंछन जिन बारमां, सित्तेर धनुष प्रमाण, काया मायु वरस वली, बहोत्तेर लाख वखाण ॥२॥
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(१७) संघ चतुर्विध थापिने थे, जिन उत्तम महाराय, तस मुख पद्म वचन सुणी, परमानंदी थाय ॥३॥
स्तवन :
स्वामी तुमे कांई कामण कीधु, चितडं मारूं चोरी लीधुं. साहिबा वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य जिणंदा अमे पण तुमशुं कामण करशुं, भगते ग्रही मन घरमां धरशुं....
साहिबा ॥१॥ मनघरमां धरीया घर शोभा, देखत नित्य रहेशो थिर थोभा, मन अकुंठित भगते, योगी भाखे अनुभव युगते... साहिवा. ॥२॥ क्लेशे वासित मन संसार, क्लेश रहित मन होय भवपार, जो विशुद्ध मन घर तुमे आव्या, तो प्रभु अमे नवनिधि रिद्धि पाम्या
___ साहिबा...... ॥३॥ सात राज अलगा जई बेठा, पण भगते अम मन मांहि पेठा, अलगाने वलग्या जे रहेवू ते भाणा खड खड दुःख सहेतुं ॥४॥
. साहिबा.... ध्यायक-ध्येय-ध्यानगुण भेके, भेद छेद कर हवे टेके; क्षीर नीर परे तुमशुं मिलगुं, वाचक जश कहे हेजे हलशुं ॥५॥
थोय : 'विश्वना उपगारी, धर्मना आदिकारी, धर्मना दातारी, कामक्रोधादि वारी, ताया नरनारी, दुःख दोहग हारी, वासुपूज्य निहारी, जाऊं हुं नित्य वारी ॥१॥
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(१८)
१३. श्री विमलनाथ भगवंतनी स्तुति :
जेनी सुणी कतक चूर्ण समान वाणी, प्राणी तणा विमल थाय विचार वारि; जेथी टले भव भयो सुखशांति थाये. नित्ये नमुं विमलनाथ जिनेन्द्र पाये.
चैत्यवंदन :
कपिलपुर विमल प्रभु, श्यामा माता मल्हार, कृतवी नृप कुल नभे, उगमियो दिनकार ॥१॥ लंछन राजे वराहनु, साठ धनुषनी काय, साठ लाख वरस तणुं, मायु सुख समुदाय ॥२॥ विमल विमल पोते थया भे, सेवक विमल करेह, तुज पद पद्म विमल प्रति से, धरी ससनेह ॥३॥
स्तवन :
दुःख दोहग दूरे टल्यारे, सुख संपदशं भेट, धींगधणी माथे कीयोरे, कुण गंजे नर खेट, विमलजिन दौठा लोयण आज, मारा सिध्या वांछित काज. ॥शावि, चरण कमळ कमला वसेरे, निरमळ थिरपद देख, समल अथिर पद परिहरी रे, पंकज पामर पेख. ॥२॥ वि... मुज मन तुज पद पंकजे रे लीनों गुण मकरंद, रंक गणे मंदरधरारे, इंद्र चंद्र नागिंद्र, ॥३॥ वि.. साहिब समरथ तुं धणी रे, पाम्यो परम उदार; मन विसरामी वालहोरे; मातमनो माधार ॥४॥ वि...
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दरिशण दीठे जिन तणुं रे, संशय न रहे वेध; दिनकर कर भर पसरतां रे, अंधकार प्रतिषेध ॥५॥ वि... अमीय भरी मूरती रची रे, उपमा न घटे कोय, शांत सुधारस झीलतीरे, निरखत तृप्ति न होय ॥६॥ वि... मेक अरज सेवक तणी रे, अवधारो जिन देव;
कृपा करी मुज दीजीये रे, आनंदघन पदसेव ॥७॥ वि... थोय :
विमल जिन जुहारो, पाप संताप वारो; श्यामांब मल्हारो, विश्व कीर्ति विफारो, योजन विस्वारो, जास वाणी प्रसारो; गुण गण भाधारो, पुण्यना से प्रकारो॥१॥
१४. श्री अनंतनाथ भगवाननी स्तुति :
हर्षे करी सुरगणो जिनजन्म काले, जई मेरुपर्वत करे अभिषेक भावे; हेते करी स्तवन मंगळ गीत गावे, सेवा अनन्त जिननी करी शांति पावे.
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चैत्यवंदन :
(२०)
अनंत अनंत गुगं आगरु, अयोध्यावासी, सिंहसेन नृप नंदनो, थयो पाप निकासी ॥१॥ सुजसा माता जनमियो, त्रीश लाख उदार. वरस आउखु पालीयुं, जिनवर जयकार ॥२॥ लंछन सींचाणा तणुंभे, काया धनुष पचास, जिन पद पद्म नम्या थकी, लहिये सहज विलास ||३||
स्तवन :
धार तलवारनी सोहिली, दोहिली चउदमा जिनतणी चरण सेवा, धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा ॥१॥ ओक कहे सेवी विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे, फल अनेकांत किरिया करी बापडा रडवडे चार गतिमांहि लेखे ॥२॥ गच्छना भेद बहु नयण निहाळतां, तत्वनी वात करतां न लाजे, उदर भरणादि निज काज करतां थका, मोहनडीया कलिकाला राजे ॥३॥ वचन निरपेक्ष व्यवहार जूठो कह्यो, वचन सापेक्ष व्यवहार साचो, वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फल, सांभळी आदरी कांई राचो ॥४॥ देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे, किम रहे शुद्ध श्रद्धा न आणो, शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया कही, छार परे लींपणु तेह जाणो ॥ ५ ॥ पाप नहीं कोई उत्सूत्र भाषण जिश्यु, धर्म नहि कोई जग सूत्र सरिखो सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेनुं शुद्ध चारित्र परखो ॥६॥ मेह उपदेशनो सार संक्षेप थी, जे नर चित्तमें नित्य ध्यावे, ते नरा दिव्य बहुकाल सुख अनुभवी नियत भानंदधन राज पावे ||७|| धार तलवारनी...
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थोय :
अनंत अनंत नाणी, जास महिमा गवाणी, सुरनर तिरि प्राणी, सांभळे जास वाणी; अक वचन समजाणी, जेह स्याद्वाद जाणी; तया ते गुण खाणी, पामीआ सिद्धि राणी ॥१।।
१५. श्री धर्मनाथ प्रभुनी स्तुति :
संसारमा भ्रमण में बहुकाळ की , दुःखो सह्या विपुल में नथी सौख्य लीधुं, पुण्योदये प्रवर धर्म लह्यो जिनेन्द्र,
श्री धर्मनाथ चरणे प्रणमे सुरेन्द्र. चैत्यवंदन :
भानुनंदन धर्मनाथ; सुबता भली मात, वज्र लंछन पनि नमे, त्रण भुवन विख्यात ॥१॥ दश लाख वरसनु आउखु, वपु धनु पीस्तालीश, रत्नपुरीनो राजीयो, जगमां नास जगीश ॥२॥ धर्म मारग जिनवर कहीये, उत्तम जन आधार, तेणे तुज पाद पद्म तणी, सेवा करुं निरधार ॥३॥
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स्तवन :
थाशु प्रेम बन्यो छे राज, निर्वहशो तो लेखे में रागी थें छो निरागी, भणजुगते होय हांसी, मेक पखो जे नेह निर्षहवी, तेमां की शाबाशी ॥१॥ था .... निरागी सेवे कांई होवे, अम मनमा नवि आणु, फळे अचेतन पण जेम सुरमणि, तिम तुम भक्ति प्रमाणु ॥२॥ थाझं... चंदन शीतलता उपजावे, अग्नि ते शीत मीटावे, सेवकनां तिम दुःख गमावे, प्रभु गुण प्रेम स्वभावे ॥३॥ थाशं... व्यसन उदय जे जलधि अनुहरे, शशीने तेह संबंधे; अण संबंधे कुमुद अनुहरे, शुद्ध स्वभाव प्रबंधे ॥४॥ था... देव अनेरा तुमथी छोटा, थें जगमां अधिकेरा, यश कहे धर्म जिनेश्वर थाशु, दिल मान्या है मेरा ॥५॥ थाशु...
थोय:
धरम धरम धोरी, कर्मना पास तोरी, केवल श्री जोरी, जेह चोरे न चोरी, दर्शन मद छोरी, जाय भाग्या सटोरी, नमे सुरनर कोरी, ते वरे सिदि गोरी ॥१॥
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(२३)
१६. श्री शांतिनाथ भगवाननी स्तुति :
षट्खंड भूमिपति पंचम चक्रवर्ती, भन्यो तणा परम तारक धर्ममूर्ति, सेवा मने भव भवे मळजो तमारी,
श्री शांतिनाथ ! सुणजो विनति अमारी. चैत्यवंदन :
शांति जिनेसर सोलमां, अचिरा सुत वंदो, विश्वसेन कुल नभ मणि, भवि जन सुख कंदों ॥१॥ मृग लंछन जिन आउखु, लाख वरस प्रमाण, हथ्थिणाउर नयरी धणी, प्रभुजी गुण मणि खाण ॥२॥ चालीश धनुषनी देहडी भे, सम चउरस संठाण, वदन पद्म ज्यु चंदलो, दीठे परम कल्याण ॥३॥
स्तवन :
म्हारो मुजरो ल्योने राज, साहिब शांति सलुणा, अचिराजीना नंदन तोरे, दर्शन हे ते माग्यो। समकित रीझ करोने स्वामी, भगति भेटणं लाग्यो ॥१॥ म्हारो... दुःखभंजन छे बिरुद तुमारो, अमने आशा तुमारी, तुमे निरागी थई ने छूटयो, शी गति होशे अमारी ॥२॥ म्हारो... कहेशे लोक न ताणी कहेवु, अवडं स्वामी आगे; पण बालक जो बोली न जाणो, तो केम व्हालो लागे ॥३॥ म्हारो... म्हारे तो तुं समरथ साहिब, तो केम मोछु मार्नु, चिन्तामणि जेणे गांठे बांध्यु, तेहने काम किश्यानुं ॥४॥ म्हारो.... अध्यातम रवि उग्यो मुज घट, मोह तिमिर हर्यु जुगते, विमळविजय वाचकनो सेवक, राम कहे शुभ भगते ॥५॥ म्हारो....
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(२५)
थोय :
वंदो जिन शांति, जास सोवन कांति, टाले भव भ्रांति, मोह मिथ्यात्व शांति, द्रव्य भाव अरि पांति, तास करवा निकांति; धरता मन खांति, शोक संताप वांति ॥१॥
१७. श्री कुंथुनाथ स्वामीनी स्तुति : भावो समस्त जगना सवि जाणनारा, भन्यो तणा दुरित दुःख विनाशनारा, नित्ये नमु विमलमार्ग बतावनारा,
श्री कुंथुनाथ : भवसिन्धु उतारनारा. चैत्यवंदन :
कुंथुनाथ कामित दीये, गजपुरनो राय, सिरि माता उरे अवतया, सुर नरपति ताय ॥१॥ काया पांत्रीश धनुषनी, लंछन जस छाग, केवलज्ञानादिक गुणों, प्रणमो धरी राग ॥२॥ सहस पंचा' वरसर्नु , पाली उत्तम माय, पद्मविजय कहे प्रणमीमे, भावे श्री जिनराय ॥३॥
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(२५)
स्तवन :
कुंथुजिन मनडुं किमही न बाजे, जिम जिम जतन करीने राखु, तिम तिम अलगु भांजे हो, कुंथुजिन....॥१॥ रजनी-वासर, वसती-उज्जड, गयण- पायाले जाय ।
साप खायने मुखडुं थोथुं, भेह उखाणो न्याय हो ॥२॥ कुंथु ... भक्तिणां अभिलाषी तपीया, ज्ञान ने ध्यान अभ्यासे.
वयरीढुं कांई अहवुं चिंते, नाखे भवले पासे हो कुंथुजिन ||३||
आगम आगमधरने हाथे, नावे किणविध आंकुं,
किंहा कणे जो हठ करी भटकुं तो, व्याळतणी परे वांकुं हो ॥ ४॥ कुंथु .
जो ठग कहुं तो ठग तो न देखूं, साहुकार पण नाही,
सर्व मां ने सहुथी अलगुं, मे अचरिज मनमांहि ||५|| कुंथु
जे जे कहुं ते कान न धारे, आप मते रहे कालो,
सुरनर पंडित जन समजावे, समजे न मारो सालो हो ॥ ६ ॥ कुंथु में जाण्युं से लिंग नपुंसक, सकल मरद ने ठेले,
बीजी वाते समरथ छे नर, अहने कोई न जेले हो ॥७॥ कुंथु .. मन साध्युं तेणे सघढुं साध्युं, मेह वाव नही खोटी,
इम कहे साध्युं ते नवि मानुं, भेकही वात छे मोटी ||८|| कुंथु
मनडुं दुराराध्य ते वश आण्णुं, ते आगमथी मति भ्राणुं, आनंदघन प्रभु माहरुं आणो, तो साचु करी जाणं ॥९॥ कुंथु .
थोय :
कुंथु जिननाथ, जे करे छे सनाथ,
तारे भव पाथ, जे ग्रही भव्य हाथ,
हनी तजे साथ, बावल दीये बाथ, तरे सुर नर साथ, जे सुणे अक गाथ ॥ १ ॥
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(२६)
१८. श्री अरनाथ स्वामीनी स्तुति :
आनन्द कन्द ! भरनाथ ! सुमेरुधीर, विश्वोपकार-कर ! कर्म-दावाग्निनीर; छोडी छ खंड शिव सौख्य लढ्यु तमे जे,
देता करो किम ? विलंब हवे मने ते. १८. चैत्यवंदन :
नागपुरे अन जिनवर, सुदर्शन नृप नंद, देवी माता जनमीयो, भवि जन सुखकंद ॥१॥ लंछन नंदावर्तन, काया धनुषह त्रीश; सहस चोराशी घरसनु, आयु जास जगीश ॥२॥ अरूज अजर अज जिनवरु से पाम्या उत्तम ठाण,
वस पद पद्म आलंबता, लहीये पद निरवाण ॥३॥ स्तवन :
मारा साहिब श्री अरनाथ अरज सुणो मेक मोरी, परम कृपालु चाकरी चाहुं तोरी, चाकरी चाहुं तोरी, प्रभु गुण गाऊं, सुख अनंता पाउं ॥१॥ परम... जिन भक्ते जे होवे राता, पामे परभव शाता, प्रभु पूजा से माळसु थातां, ते दुःखीया परभव जाता ॥२॥ परम... प्रभु सहायथी पातक भ्रूजे, सारी शुभमति सुजे, ते देखि भवियण प्रतिबूजे, वळी कर्म रोग सवि रुजे ॥३॥ परम... सामान्य नरनी सेवा करी तो पण प्राप्ति थाये, तो त्रिभुवन नायकनी सेवा, निश्चय निष्फळ न जाय ॥४॥ परम... साची सेवा जाणी प्राणी, जे जिनवर आराधे, श्री खिमाविजय पद पामी पुण्ये, जस सुख लहे निराबाघे ॥५॥ परम
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थोय :
(२७)
भर जिनवर राया, जेहनी देवी माया, सुदर्शन नृप ताया, जास सुवर्ण काया, नंदावर्त्त पाया, देशना शुद्ध दाया, समवसरण विरचाया, इंद्र इंद्राणी गाया ||१||
१९. श्री मल्लिनाथ भगवंतनी स्तुति :
जे कामधेनु सुरवृक्ष थकी वधारे, आपे सुख भविक चित्त विषाद हारे,
ते मल्लिनाथ विभु बालथी ब्रह्मचारी, लेजो तमे भवथी नाथ ! मने उगारी.
चत्यवंदन :
मल्लिनाथ ओगणीसमा, जस मिथिला नगरी; प्रभावतीजस मावडी, टाले कर्म घयरी ॥१॥ तात श्री कुंभ नरेसरू, धनुष पच्चीशनी काय; लंछन कलश मंगलकरू, निर्मम निस्माय ॥ २ ॥ चरस पंचावन सहसनुं थे, जिनवर उत्तम आय; पद्मविजय कहे तेहने, नमतां शिवसुख थाय ॥३॥
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(२०)
स्तवन :
पंचम सुरलोकना वासी रे, नवलोकांतिक सुविलासी रे; करे विनंती गुणनीराशी मल्लिनाथ जिननाथ जी व्रत लीजे भविजीवने शिवसुख दीजे ॥१॥ मल्लि.... तुमे करुणारस भंडार रे, पाम्या छो भवजल पार रे, सेवकनो करो उद्धार; ॥२॥ मल्लि... प्रभु दान संवत्सरी आपे रे, जगनां दारिद्र दुःख कापे रे, भव्यत्व पणे तस थापे ॥३॥ मल्लि...... सुरपति सघळा मळि भावे रे, मणि रयण सोवन वरसावे रे, प्रभु चरणे शीश नमावे ॥४॥ मल्लि..... तीर्थोदक कुंभा लावे रे, प्रभुने सिंहासन ठावे रे, सुरपति भक्ते नवरावे ॥५॥ मल्लि ........ वस्त्राभरणे शणगारे रे फुल माला हृदय पर धारे रे, दखडां इन्द्राणि उवारे ॥६॥ मल्लि........ मल्या सुरनर कोडाकोडी रे, प्रभु आगे रह्या कर जोडी रे, करे भक्ति युक्ति मद मोडी ॥७॥ मल्लि..... मृगशिर शुदीनी अजुआली रे, अकादशी गुणनी भाली रे, वया संयमवधु लटकाली ॥८॥ मल्लि..... दीक्षा कल्याणक मेह रे, गाता दुःख न रहे रेह रे, लहे रुपविजय जस नेह ॥९॥ मल्लि ......
थोय :
मल्लिजिन नमीये, पूरवलां पाप गमाये, इंद्रिय गण दमिये, आण जिननी न क्रमीये, भवमा नवि भमीये, सर्व परभाष वमीये, जिन गुणमा रमीये, कर्म मल सर्व धमीये ॥१॥
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२०. श्री मुनिसुव्रत स्वामनी स्तुति : दया लावी अश्वे सुरसहित भाज्या भृगुपुरे, उगार्यो भावीने प्रवर उपदेश प्रभु तमे; हठावी कमाने परमपद पाम्या जगधणी, मने अी सेवा मुनिसुव्रतदेवा चरणानी ।
चैत्यवंदन:
मुनिसुव्रत जिन वीशमा, कच्छपनुं लंछन, . पद्मा माता जेहनी, सुमित्र नप नंदन ॥१॥ राजगृही नयरी धणी, वीश धनुष शरीर, कर्म निकाचित रेणु व्रज, उद्दाम समीर ॥२॥ त्रीश हजार वरसतणु भे, पाली आयु उदार, पदमविजय कहे शिव लह्या, शाश्वत सुख निरधार ॥३॥
स्तवन :
मुनिसुव्रत जिन मन मोहयु माहरु रे, शरण ग्रहयु में तमारु, प्रातः समये जागुं हुं ज्यारे, स्मरण करु छु तमारु, हो जिनजी तुज मुरति मनोहरणी, भवसागर जल तरणी हो॥१॥ आप भरोसो जगमा छे तारो तो घणु सारू, जन्म जरा मरणो करी थाक्यो, आशरो मे लीधो तारो ॥२॥ हो.... चुं चं चीडिया बोले, भजन करे छे तमारु, मूर्ख मनुष्य जे प्रमादे पडीयो छे, नाम जपे नहि तारुं ॥३॥ हो..... भोळा थातां लहु शोर सुन हुं कोई हसे कोई रूवे न्यारू, सुखीयो सुवे ने दुःखीयो रूवे, अकल गति से विचारू ॥४॥ हो...
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(३०)
खेल खलकने बंध नाटकनो, कुटुंब कबीलो हुं धारु, जिंहा सुधी स्वारस्थ तिहां सुधी, सर्वे अंत समये सहु न्यारं ।।५।। हो... मायाजाळ वणी जोई जाणी, जगत लागे छे खालं,
उदयरत्न अम जाणी प्रभु, ताहरूं शरण ग्रहयु में साधु ॥६॥ . थोय :
मुनिसुव्रत नामे, जे भवि चित्त कामे, सविसंपत्ति पामे, स्वर्गनां सुख जामे, दुर्गति दुःख वामे, नवि पडे मोह भामे, सर्व कर्म विरामे, जई वसे सिद्धी धामे ॥१॥
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२१. श्री नमिनाथ भगवंतननी स्तुति :
सुणी तारी वाणी भव भयहरी चित्त विकसे, अने देखी मूर्ति ममीय सरती पाप विणसे, भन्यो छु संसारे तुजविण विभो ! चार गतिमा,
महापुण्ये माजे नमिजिन ! हुं आभ्यो शरणमा. चैत्यवंदन : मिथिला नयरी राजीयो, वप्रा सुत साचो, जिजयराय सुव छोडीने, भवर मत माचो ॥२॥ नीलकमल लंछन भलं, पनर धनुषनी देह; नमि जिनवरनु सोहतुं, गुण गण मणिगेह ॥२॥
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दश हजार वरसतणुं भे, पाल्यु परगट भाय, पदमविजय कहे पुण्यथी, नमीये ते जिनराय ॥३॥
स्तवन :
नित्य नमीये नमि जिनवरूरे जो, जे एक अनेक स्वरूपजो, नित्य अनित्य पणे वलीने, जेहना गुणमति अद्भुतजो॥२॥ नित्य... अवयवी अवयव रूप छे जो, जे अस्ति नास्ति स्वभाव जो, वळी गुणातीत ने जे गुणीजो, रूपातीत स्वरूपी भावजो ॥२॥ नित्य... व्यय उत्पत्ति ध्रुव जेह छेजो, जे वेदी भवेदी विचारजो, भिन्नभिन्न पण करीजो, नित्य भोगवे सुख श्रीकारजो॥३॥ नित्य... कर्ता अकर्ता जेह छेजो, वली भोक्ता अभोक्ता जेहजो, सक्रिय अने अक्रिय वली जो, परिणाम इतर गुण गेहजो ॥४॥ नित्य.. योगातीत योगीस्वरुपजो, वर्णातीत ने तदवंतजो; स्याद्वादे अणि परे करीजो तु सिख स्वरूप भगवंतजो॥५॥ नित्य.. इम जिनवरने ओलखीजे, जे थिर मन करी करे सेवजो, उत्तम भविजन ने होवेजो, कहे पद्मविजय पोते देवजो॥६॥ नित्य...
थोय:
नमिये नमिनेह, पुण्य थाये ज्यु देह, अघ समुदाय जेह, ते रहे नांहीरेह; लहे केवल तेह, सेवना कार्य मेह, लहे शिवपुर गेह, कर्मनो भाणी छेह ॥१॥
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२२. श्री नेमिनाथ परमात्मानी स्तुति :
प्रकाशी छो स्वामी शशि रवि थकी भाप अधिका; अभिष्टोने आपी अधरित करी कल्पतलिका; थया सौथी मोटा; शियळधर राजीमती तजी%B नमुं नित्ये नेमि-प्रभु पद पयोजे प्रणयथी
चैत्यवंदन:
नेमिनाथ बावीशमा; शिवादेवी माय; समुद्रविजय पृथिवीपति; जे प्रभुना ताय ॥१॥ दशह धनुषनी देहडी, आयु वरस हजार, शंख लछन धर स्वामीजी, तजी राजुल नार ॥२॥ शौरीपुरी नयरी भली मे, ब्रह्मचारी भगवान, जिन उत्तम पद पद्मने नमतां अविचल ठाण ॥३॥
स्तवन:
तोरणथी रथ फेरी गयोरेहां, पशुंभा शिर देई दोष; मेरे वालमा। नवभव नेह निवारीयो रेहां, शो जोई आच्या जोष ॥१॥ मेरे... चंद्र कलंकी जेहथी रे हां, राम ने सीता वियोगा। तेह कुरंग ने वयणडे रे हां, पतिआवे कुण लोक ||२|| मे...... उतारी हुँ चित्तथी रे हां, मुगति धूतारी हेत, सिद्ध अनंते भोगवी रे हां, तेह शुं कवण संकेत ॥३॥ मे......। प्रीत करंता सोहली रे हां, निरवहतां जंजाल, जेहवो व्याळ खेळाववो रे हां, जेहवी अगननी झाळ || मे..... जो विवाह अवसर दिओ रे हां, हाथ उपर नवि हाथ, दीक्षा अवसर दीजीये रे हां, शिर उपर जगनाथ ॥५॥ मे...
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इम विलवती राजुल गई रे हां, नेम कने व्रत लीध; वाचक यश कहे प्रणमीये रेहां, भे दंपत्ति दोय सिद्ध ॥६॥ मे..
थोय :
राजुल वर नारी, रुपथी रति हारी, तेहना परिहारी, बालथी ब्रह्मचारी; पशुआं उगारी, हुमा चारित्रधारी, केवलश्री सारी, पामीया घाति वारी ॥१॥
२३. श्री पार्श्वनाथ स्वामीनी स्तुति :
फळे जेना ध्याने, सकळ मननां इष्ट पळमां, गवायेलो जेनो; सफळ मननां इष्ट पळमां करे जेनी सेवा; धरणपति पद्मावती सदा, हरो पाश्र्वस्वामी मुज हृदयनी सर्व विपदा
चैत्यवंदन : .माश पूरे प्रभु पासजी; त्रोडे भवपास; वामा माता जनमीया; महि लछन जास ।।१॥ अश्वसेन सुत सुखकरु नव हाथनी काया; काशी देश वाणारसी; पुण्ये प्रभु आया ||२|| अकसो वरसनु उखुं भे; पाली पास कुमार; पद्म कहे मुक्ते गया; नमतां सुख निरधार ॥३॥
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(३४)
स्तवन :
प्यारो प्यारो रे हो वाला मारा पासजिणंद मुने प्यारो; तारो तारो रे हो वाला मारा भवना दुखडा वारो; काशीदेश वाणारसी नगरी; अश्वसेन कुल सोहीभेरे; पासजिणंदा वामानंदा मारा वाला; देखत जन मन मोहीमे ॥१॥
प्यारो...... छप्पन दिग्कुमारी मीली आवे; प्रभुजीने हुलरावे रे; थेई थेई नाच करे मारा वाला हरखे जिन-गुण गावे ॥२॥ प्यारो.. कमठ हठ गाळ्यो प्रभु पाश्र्वे; बळतो उगार्यो फणी नागरे; दीभो सार नवकार नागकुं; धरणेद्रपद पायो ॥३|| प्यारो.... दीक्षा लई प्रभु केवळ पायो; समवसरणे सुहायो रे; दीये मधुरी देशना प्रभुः चौमुख धर्म सुणायो ॥४|| प्यारो..... कर्म खपावी शीव पुर जावे; अजरामर पद पावे रे, ज्ञान अमृत रस फरसे मारा वाला, ज्योति से ज्योत मिलावे ॥५॥ प्यारो.
थोय :
श्री पास जिणंदा; मुख पूनम चंदा; . पद युग अरविंदा; सेवे चोसठ इन्दा, लंछन नागिंदा; जास पाये सोहंदा; सेवे गुणी वृंदा; जेहथी सुख कंदा ॥१॥
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(३५)
२४. श्री महावीर भगवाननी स्तुति :
मळ्या आजे मारा, भव भव तणा पुण्य उदये, समुद्धर्ता स्वामी, त्रि-जगजनना कंईक समये; मने भापी ज्ञाना-दिक गुण गुणी किंकर नकी महावीरस्वामी चरम जिन तारो भव थकी.
चैत्यवंदन : सिद्धारथ सुत वंदिये, त्रिशलानो जायो; क्षत्रिय कुंडमां अवतया, सुर नरयति गायो ॥१॥ मृगपति लंछन पाउले, सात हाथनी काया, बहोतेर वरसनु आउखु, वीर जिनेश्वर राया ॥२॥ खिमाविजय जिनरायना मे, उत्तम गुण अवदात, सात बोलथी वर्णव्या, पद्मविजय विख्यात ॥३॥
स्तवन :
बीरजी सुणो मेक विनंति मोरी; वात विचारो तुमे धणी रे, वीर मने तारो महावीर मने तारो, भवजल पार उतारोने रे ॥१॥
वीरजी....
परिभ्रमग में अनंता रे कीधां, हजुये न माग्यो छेडलो रे। तुमे तो थया प्रभु सिद्ध निरंजन, अमे तो अनंता भव भम्या रे ॥२॥ तमे अमे वार अनंति रे वेला, रमीया संसारी पणे रे । तेह प्रीत जो पूरण पालो; तो अमने तुम सम करो रे ॥३॥ वीरजी... तुम सम अमने जोग न जाणो, तो कांई थोडं दीजीभे रे, भवोभव तुम चरणोनी सेवा; पामी अमे घj रीझीये रे ॥॥
वीरजी....
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इंद्रजालीयो कहेतो रे आव्यो, गणधर पद तेहने दोयो रे । अर्जुनमाळी जे घोर पापी; तेहने जिन तमे उद्धर्यो रे ॥५॥ वीरजी... चंदनवाला अडदना बाकुला; पडिलाभ्या तुमने प्रभु रे । तेहने साहूणी साची रे कीधी; शिववधु साधे भेळवी रे ॥६॥ . चरणे चंडकोशियो डंसीयो, कल्प माठमे ते गयो रे।। गुण तो तमारा प्रभु मुखथी सुणीने, भावी तुम सन्मुख रह्यो रे ॥७॥
वीरजी.... निरंजन प्रभु नाम धरावो; तो सहु ने सरिखा गणो रे। भेदभाव प्रभु दूर करीने; मुजशु रमो अकमेकशुं रे ॥८॥ वीरजी... मोडावहेला; तुमहीज तारण; हवे विलंब शा कारणे रे ।
ज्ञानतणा भवना पापमिटावो, वारी जाउं तोरा वारणे रे ॥९॥ थोय :
महावीर जिणंदा, राय सिद्धार्थ नंदा; लंछन मृगेंदा, जास पाये सोहंदा; सुर नर वर इन्द्रा, नित्य सेवा करंदा टाले भव फंदा; सुख आपे अमंदा ॥१॥
२५. श्री सीमंधर भगवाननी स्तुति :
महाविदेहमां श्री सीमंधरस्वामी; नित्य बंदु प्रभात, त्रिकरणवळी त्रियोगथी, जपुं अहर्निश जाप । भरवक्षेत्रमा हुँ रहुं, आप रहो छो विमुख, ध्यान लोहचुम्बक परे, करी दृष्टि सन्मुख ।।
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(३७)
चैत्यवंदन :
श्री सीमंधर वीतराग, त्रिभुवत तुमे उपगारी। श्री श्रेयांस पिता कुले, बहु शोभा तुमारी ॥१॥ धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी। वृषभलांछने विराजमान, वंदे नरनारी ॥२॥ धनुष पांचशे देहडी), सोही सोवन वान । कीर्तिविजय उवज्झायनो, विनयधरे तुम ध्यान ॥३॥
स्तवन :
सुणो चंदाजी ! सीमंधर परमातम पासे जाजो, भुज विनतडी, प्रेमधरीने अणिपरे तुमे संभळावजो ॥१॥ सुणो.... जे ऋण भुवननो नायक छ, जस चोलठ इन्द्र पायक छ, नाण दरिसण जेहने क्षायक छ ॥२॥ सुणो.... बार पर्षदामांहि बिराजे छ, जस चोत्रीश अतिशय छाजे छे गुण पात्रीश वाणीमे गाजे छे ॥३॥ सुणो...... भविजनने जे पडिबोहे छे, तुम अधिक शीतल गुण सोहे छे, रुप देखी भविजन मोहे छे ।।४॥ सुणो...... तुम सेवा करवा रसियो छु, पण भरतमां दूरे वसियो छु। महामोहराय कर फसियो छु ॥५॥ सुणो..... पण साहिब चित्तमा धरियो छे तुम आणा खड्ग कर प्रहिमो छे, पण काईक मुजथी डरियो छे ॥६॥ सुणो..... निन उत्तम पूंठ हवे पूरो, कहे पद्मविजय थाऊं शूरो; तो वाधे मुज मन अति नूरो ।।७॥ सुणो.......
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(३८)
थोय :
श्री सीमंधर सेवित सुरवर, जिनवर जग जयकारीजी, धनुष पांचशे कंचनवरणी, मूरति मोहनगारीजी । विचरंता प्रभु महाविदेहे, भविजनने हितकारीजी; प्रहउठी नित्य नाम जपीजे, हृदय कमलमां धारीजी ॥ १ ॥
२६. श्री सिद्धाचलजीनी स्तुति :
पूर्णानन्दमयं महोदयमयं कैवल्यचिद्दग्मय; रूपातीतमयं स्वरूपरमणं स्वाभाविकी - श्रीमयम् । ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं स्याद्वाद - विद्यालयम् ; श्री सिद्धाचल- तीर्थराज मनिशं वन्देऽहमादीश्वरम् ॥१॥
चैत्यवंदन :
श्री शत्रुंजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गतिवारे, भावधरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे ॥ १॥ अनंत सिद्धनो भेह ठाम, सकल तीर्थनो राय, पूर्वनवाणु ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय ॥२॥ सूरज कुण्ड सोहामणो, कवड जक्ष आभिराम, नाभिराया कुल मंडणो, जिनवर करूं प्रणाम ||३||
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(३९)
स्तवन :
शेत्रुंजा गढना वासी रे, मुजरो मानजो रे, सेवक नी सुणी, वातो रे, दिलमां धारजो रे, प्रभु में दीठो तुम देदार,
आज मुने उपन्यो हरख अपार, साहिबानी सेवा रे,
भव-दुःख भांजशे रे, दादाजीनी सेवा रे, शिवसुख आपशे रे ॥ १ ॥ अक अरज अमारी रे, दिलमां धारजो रे, चोराशी लाख फेरा रे, दूर निवारजो रे, प्रभु मने दुर्गति पडतो राख
मने, दरिण वहे दाख ||२|| साहिबानीं. दौलत सवाई रे, सोरठ देशनी रे, बलिहारी हुं जाऊं रे, प्रभु तारा वेशनी रे, प्रभु तारुं रुडुं रुप, मोह्या सुरनर वृंद ने भूप ॥ ३ ॥ साहिबानी....
तीरथ न कोई रे, शत्रुजा सारखं रे, प्रवचन पेखीने कीधुं, में तो पारखु रे, ऋषभने जोई जोई हरखे जेह, त्रिभुवन लीला पामे तेह || ४ || साहिबानी सेवा रे...... भवोभवहुं मांगे रे, प्रभु तारी सेवना रे,
भावन भांगी रे, जगमां जे बिना रे,
प्रभु मारा पूरो मनना कोड,
भेम कहे उदय रतन कर जोड ||५|| साहिबानी ...
थोय :
श्री शत्रुंजय आदि जिन भग्वा, पूरव नव्याणुं वारजी, अनंतलाभ इहां जिनवर जाणीं, समोसयी निरधारजी । विमल गिरीवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामजी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्ध्या, भेकपो आठ गिरीनामजी ॥
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(४०)
श्री सिद्धचक्र (नवपद ) जीनी स्तुति
अर्हन्तो भगवंत इन्द्र महिता, सिद्धाञ्च सिद्धिस्थिता; आचार्य जिनशासनोन्नति कराः, पूज्या उपाध्यायकाः, श्री सिद्धान्तपाठका मुनिवराः, रत्नत्रयाराधका, पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलं ॥
चैत्यवंदन :
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ओरि सिरि अरिहंत मूल, दृढ पीठ पई डिभो, सिद्ध सूरि उवज्झाय साहू, चिंहु पास गरिट्ठिओ ॥१॥ दंसणनाण चरित्त तवहि, पडिसाह सुंदरूं,
तत्तख्खर सरवग्ग लद्धि, गुरुपयदल दुंबरूं ॥२॥ दिसिपाल जक्ख-जक्खिणी-पमुह, सुरकुसुमेहिं अलंकियो, सो सिद्धचक्क गुरू कप्पतरू, अम्ह मनवंछिय फलदियो ॥३॥
स्तवन :
अवसर पामीने रे, कीजे नव आयंबिलनो भोळी,
भोळीकरतां आपद जाये, ऋद्धि-सिद्धि लही भे बहुली ॥१॥ अव ... आसोने चैत्रे आदरशुं, श्री सातमथी संभाली रे,
आळस मेळी आंबिल करशे, तसघर नित्य दिवाळी ||२|| अव.... पूनमने दिन पूरी थाये, प्रेमशुं पखाली रे,
सिद्धचक्रने शुद्ध आराथी, जाप जपे जपमाली ||३|| मच..... देहरे जईने देव जुहारो, आदीश्वर अरिहंत रे,
चोवीसे चाहीने पूजो, भावशुं भगवंत ॥४॥ भव...
बे टंके पडिक्कमणुं बोल्युं, देववन्दन ऋण काल रे,
श्री श्रीपालतणी परे समजी, चित्तमां राखो चाल ||५|| अव . . . .
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(४१) समकित पामी अंतरजामी, माराधो कांत रे, स्याद्वाद पंथे संचरता, आवे भवनो अंत ॥६॥ अव.... सत्तर चोराणुये सुदि चत्रीये, बारसे बनावी रे, सिद्धचक्र गाता सुख संपत्ति, चालीने घेर भाषी ॥७॥ अष... उदयरत्न वाचक जंपे; जे नरनारी चाले रे,
भवनी भावड ते भांजीने, मुक्तिपुरीमा म्हाले रे ॥८॥ अथ.... थोय :
अरिहंत नमो वळी सिद्ध नमो, आचारज-वाचक-साहु-नमो। दर्शन-ज्ञान-चारित्र नमो, तप अ सिद्धचक्र सदा प्रणमो॥
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(४२) सामायिक लेवानो विधि
सामायिकमां जोईती वस्तुओः -
१. शुद्धवस्त्र, २. कटासणुं, ३. मुहपत्ती, ४. सापडो, ५. धार्मिक पुस्तक, ५. चरवळो, ६. घडी के घडीमाळ, ८. नवकारवाळी. १. प्रथम शुद्ध वस्त्र पहेरवां पछी: २. चरवळाथी जग्या पूंजीने शुद्ध करवी. ३. गुरुनो योग न होय तो भेक ऊंचा आसन उपर धार्मिक पुस्तक, मुह
पत्ती के नवकारवाळी मूकवी पछी : ४. मुहपत्ती डावा हाथमा राखीने जमणो हाथ तेनी सन्मुख राखवो: ५. ते पछी-नमस्कार महामन्त्र तथा पंचिदिय-सूत्र कहीने तेमां आचा.
यनी सामे तेमनी संमतिथी थाय छे. अम समजवू पछी: ५. मेक 'खमासमण' दईने, 'इरियावही सूत्र' कहे. ६. पछी 'तस्स उत्तरी' तथा 'अन्नत्थ' सूत्र कही 'चंदेसु निम्मलयरा'
सुधौनो अक लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. लोगस्स न आवडतो होय
तो चार वार 'नमस्कार मंत्र' बोलवो. ८. काउस्सग पारीने प्रगट 'लोगस्स' बोली भेक 'खमासमण' देवं पछी : ९. 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक मुहपत्ती पडिलेहुं ?
'इच्छं' अम कहीने ५० बोलथी मुहपत्ती पडिलेहवी. १०. पछी भेक 'खमासमण' दईने 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामा
यिक संदिसाहुं ?' 'इच्छं' मेम कहेवु.
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११. मेक 'खमासमण' दई 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! 'सामायिक
ठाऊ ?' 'इच्छ' अम कहेवुः १२. पछी वे हाथ ललाटे जोडी अकवार 'नमस्कार मंत्र' गणवोः .. १३. पछी 'इच्छकारी भगवन् ! पसायकरी सामायिक दंडक उच्चरावोजी
ओम कहेवू. त्यारे गुरु अथवा वडील न होय तो सायायिक लेनारे
पोते 'करेमि भंते' मे सूत्र बोलवु, १४. पछी भेक 'खमासमण' दई इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! 'बेसणे . संदिसाहु ?' 'इच्छं' कही भेक 'खमासमण' दई. १५. 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे ठाऊ ?' 'इच्छं' कही भेक
'खमासमण' दई : १६. 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं ?' 'इच्छं' कही
मेक 'खमासमण' दई पछी : १७. 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूं ?' 'इच्छं' कही बे हाथ
जोडी त्रण वार 'नमस्कार मंत्र' बोली, बे घडी अटले भडतालीस मिनीट सुधी धर्मध्यान करवू. शास्त्रनो पाठ लेवो. तेनो अर्थ शीखवो ते संबंधी प्रश्नोत्तरो करवा, धर्म-कथा-सांभळवी, अनानुपूर्वी गणवी, माळा फेरववी, अरिहंतनो जाप करवो . धर्मध्याननो अभ्यास करवो. मे धर्मध्यान कहेवाय छे.
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(४४) सामायिक पारवानो विधि
१. प्रथम मेक 'समासमण' दईने 'इरियावही' सूत्र कहे. २. पछी 'तस्स उत्तरी' 'भन्नस्थ' कही (चंदेसु निम्मलयरा सुधी) अंक
लोगस्सनो अथवा चार नमस्कार मंत्रनो काउसग्ग करवो. पछी
काउसग्ग पारीने ३. प्रगट 'लोगस्स' कही भेक 'खमासमण' देवु. पछी : ४. 'इच्छाकारेण' संदिसह भगवन् ! मुहपत्ती पडिलेहुँ ? 'इच्छं' अम
कहीने मुहपत्ती पडिलेहधीः पछी : ५. मेक 'खमासमण' दईने 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन ! सामायिक .. . पारुं ?' 'यथाशक्ति' अम कहीने : ६. 'खमासमण' दइ 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पायु ?'
'तहत्ति' अम कहीने : ७. जमणो हाथ चरवला अथवा कटासणा उपर स्थापीने अक नवकार
गणि 'सामाय-वय-जुत्तो' सूत्र कहेg. ८. पछी जमणो हाथ सघळो राखी भेक नवकार गणी स्थापनाचार्य योग्य स्थाने मुकवा.
उपरा उपर बे के त्रण सामायिक करी शकाय, तेमां सज्झाय करूं' ने बदले 'सज्झायमां छु' मेम कहे, पण दरेक घखते सामायिक पारवू नहिं, १ थी वधारे सामायिक करवा होय तो वे पूरा थये अने व्रण करवा होय तो ऋण पूरा थये, भेक वार पारवं. जो अकी साथे माठ-दस सामायिक करवा होय तो पण त्रण-त्रण सामायिक पूरा थये पारवा. पण लेवा जरुरी छे.
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(४५)
गुरुवंदन-विधि
आचार्य उपाध्याय के साधु जेओ पांच महाव्रतनुं पालन करता होय तेमनी समीपे साडा त्रण हाथ दूर उभा रही बे 'खमासमण' देवा - 'इच्छामि खमासमणो ! वंदिऊं, नावणिज्जाओ निसीहिभाओ, मत्यभेणवंदामि || पछी उभा थईने इच्छकार ! सुहराइ ? (सुह- देवसि ?) सुख तप ? शरीर निराबाध ? सुख संजम जात्रा निर्वहो छो जी ? स्वामी ? शाता छे जी !
( पछी गुरु जवाब आपे - देव? गुरु- पसायते सांभळीने शिष्य कहे ) भात पाणीनो लाभ देजोजी ॥
पछी आदेश मांगी खमासमण मुद्रा नीचा नमी 'इच्छाकारेण संहिसह भगवन ! अब्भुडिओऽहं अब्भिंवर राइभ (बपोरना १२ वागता सुधी) देवसिअं (बपोरना १२ पछी) खामेऊं ? कहेतुं पछी गुरु कहे खामेह-ते सांभळीने 'इच्छं' 'खामेमि राई ( देवसिभं ) ' कहेवु.
ते पछी सूत्र : जंकिचि अपत्ति, परपत्ति, भत्ते, पाणे, विणले, वेयावच्चे, आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे, अंतर भालाके, उवरिभासा | जंकिचि मज्झ विषय-परिहीण सुहुमं वा बायरं वा तुब्भे जाह अहं न जाणामि, तस्स मिच्छामि दुक्कड” —
[ पछी पञ्चक्खाण लेवुं होय तो लेवु ]
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चैत्यवंदन करवानी विधि
विधि-प्रथम एक खमासमण.
सूत्र-इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जासे, निसिहीआओ मत्थभेण वंदामि ।
विधि-इरियावही करवा. सूत्र-इच्छारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं । इच्छामि पडिक्कमिउं । इरियावहियामे विराहणा।
गमणागमणे । पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसा-उत्तिंग -पणग-दगमट्टि-मक्कडा-संताणा-संकमणे ।
जे मे जीवा विराहिया । भेगिंदिया, बेइंदिया, तेइन्दिया, चउरिन्दिया, पंचिंदिया। अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाईया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणामओ ठाण, संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥
तस्स-उत्तरी-करणेणं, पायच्छित्त-करणेणं, विसोही-करणेण, विसल्लीकरणेणं, पावाण-कम्माणं निग्घायणटाने ठामि काउस्सग्गं ॥
__ अन्नत्थ उससिणं नीससिमेण खासिमेणं छीमेणं, जंभाईभेणं उड्डुअणं वाय-निसग्गेणं, भमलीभे पित्त-मुच्छामे, सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहि, सुहुमेहिं दिठी-संचालेहिं.
अवमाईहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ।
जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव काय ठाणेण मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥
विधि-१ लोगस्स अथवा ४ नवकार नो काउस्सग्ग करवो.
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(४७) लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे । भरिहंते कित्तईस्सं, चउवीसपि केवली ॥१॥ उसभ मजिअंत्रवंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल-सिज्जंस वासुपूज्ज च । विमल मणंत च जिणं, धम्मसंतिं च वंदामि ॥३॥ कुंथु अरं च मल्लि, वंदे मुणिसुच्वयं नमिजिणंच । वंदामि रिट्टनेमि, पासं तह वदमाणं च ॥४॥ भेवं मझे अभिथुआ, विहुय-रय-मला पहीणजर-मरणा । चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ कित्तिय-वंदिय-महिया, जे थे लोगस्स उत्तमा सिद्धा । भारुग्ग-बोहिलाभ, समाहिवर मुत्तमं किंतु ॥५॥ चंदेसु निम्मलयरा, आईच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥
विधि-उपर प्रमाणे, १ लोगस्सनो काउस्सग्ग चंदेसुनिम्मलयरा सुधी करीने काउस्सग्ग पारीने प्रगट लोगस्स बोलवो. मा प्रमाणे इरियावही नी विधि पूरी थया पछी चैत्यवंदन करवा माटे त्रण खमासमण देवा. पछी इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं, कही डाबो ढींचण ऊंचो करी).....
सूत्र-सकल कुशलबल्ली-पुष्करावर्तमेघो, दुरित तिमिर भानुः, कल्पवृक्षोपमानः । भवजलनिधिपोतः, सर्व संपत्ति हेतुः, सभवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः ॥ श्रेयसे पार्श्वनाथः ॥
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(४८)
पछी गमे ते भेक चैत्यवंदन बोलवु पछी :
सूत्र : जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालिमाणुसे लोभ, जाई जिबिंबाई, ताई सव्वाई वंदामि ||१|| नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं ॥१॥ आइगराणं, तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं ॥ ॥ पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं ॥ ३ ॥
लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं लोगहीयाणं लोगपवाणं, लोगपज्जो भगराणं ॥४॥
धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं धम्मवर चाउरंत चक्कवट्टीणं ||५||
अप्प हियवर नाणदंसणधराणं, वियट्टछउमाणं ॥ ६ ॥
जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं,
ताण मोगाणं ||८||
सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं, सिवमयलमरुभमणतमक्खयमन्वाबाहमपुरावित्ति
सिद्धि नामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाण ॥९॥ जे अ अईमा सिद्धा, जे अ, भविसंतिणागले काले,
संपई वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ॥१०॥
सूत्र - जावंति चेईभाई, उड्ढे अ अहे म तिरिभलोभे । सवाई ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई || १|| भे सूत्र बोलवु ।
विधि-ते पछी भेक खमासमण देवुं, 'इच्छामि खमासमणो । वंदिऊं जावणिजामे निसीहीआओ मत्थभेण वंदामि” बोलवं. ते पछी :
सूत्र - 'जावंत के वि साहू, भव हेरवय-महाविदेहेन । सव्वेसि तेसिं पणभो, तिविहेण तिदंड- विरयाणं ॥ १ ॥
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(४९)
सूत्र -- नमोऽर्हत्-सिद्धाचार्येापाध्याय - सर्व साधुभ्यः ! बोलीने पछी
विधि-ते पछी कोई पण भेक स्तवन पूर्वाचार्यैथे बनावेलुं बोलवु . ते उपसर्गहर सूत्र बोलवु .
सूत्र - " उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म- घण- मुक्कं । विसहर - विस- निन्नासं, मंगल-कल्लाण- आवासं ॥ १॥ विसहर - फुलिंग मंत, कंठे धारेई जो सया मणुओ । . तस्स गह-रोग-मारी-दुट्ठज्जरा जंति उवसामं ॥२॥ चिट्ठउ दूरे मंतो, तुझ-पणामोवि बहुफलो होई । नर - तिरिसुवि जीवा, पावति न दुक्ख-दोगच्चं ॥३॥ तुह सम्मत्ते लध्धे, चिंतामणि- कप्पपायव- भहिथे । पावंति अविग्घेण, जीवा अयरामरं ठाणं ॥४॥
ter संयुभो महायस ! भक्ति-भर- निब्भरेण हियक्षेण । ता देव ! दिज्ज बोहिं भवे भवे पास- जिणचंद ||५||
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विधि - पछी बे हाथ मस्वके ( ललाटे) घरी 'जयवीयराय सूत्र मबमखंडा' सुधी कहेवुं. पछी बे हाथ नीचा उतारी 'जयवीयराय' सूत्र कर.
सूत्र - जय वीयराय ! जग-गुरु ! होऊं ममं तुह पभावमो भयवं ! निव्वे मग्गाणु- सारिभा इठ्ठफल-सिद्धी ॥१॥
लोगविरुद्ध च्चाभो, गुरुजण-पूभा परत्थकरणंच । सुहगुरु-जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंडा ॥२॥
वारिज्जइ जईवि नियाण-बंधणं वीयराय ! तुद्द समये तहवि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह: चलणाणं ॥३॥
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दुक्स-खो कम्म-खो, समाहि-मरणं य बोहिलाभोग। संपज्जउ मह मे, तुह नाह ! पणाम करणेणं ॥४॥ सर्व-मंगल-माङ्गल्यं, सर्व-कल्याण-कारणम् । प्रधामं सर्व-धर्माणां जनं जयति शासनम् ।।५।। विधि-पछी उभा थई 'अरिहंत चेईयाण' सूत्र बोलg. सूत्र-भरिहंत-चेईयाणं करेमि काउसग्गं ।
वंदण-वत्तियाने पूक्षण-वत्तिया सक्कार-वत्तियामे सम्माण-पत्तियाने बोहिलाभ-वत्तिया निरुवसग्ग-वत्तियामे, सदा मेहाने घिईले धारणा अणुप्पेहाझे वड्ढमाणी, गामि काउस्सागं ॥
बोल्यापछी 'मन्नत्य' सूत्र बोलवु :
सूत्र-मन्नत्थ-उससिअणं नीससिअंण खासिणं छीण जंभाईअॅण उड्डभेणं वाय-निसग्गेण, भमलीमे पित्त-मुच्छामे, सुहुमेहिं अंगसंचालेहि, सुहुमेहि खेल-संचालहिं सुहुमेहिं दिछी-संचालेहि, मेवमाई िभागारेहि, मभग्गो अविराहिलो हुज्ज मे काउसग्गो । जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि; वाव काय ठाणेण मोणेणं झाणेणं भष्पाणं वोसिरामि ।।
विधि-बोलीने अक नवस्कारनो काउसग्ग करवो. पछी काउसग्ग पारीने 'नमोऽहंत' सूत्र कहीने थोय कहेवी. पछी भेक 'खमासमण' देवं.
[पछी पन्चरखाण जे लेवु होय ते लेखें): .
१. पाछळ दरेक भगवाननी थोय मापेली छे.
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50-
5505555 8 श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण केन्द्र विद्यार्थी कल्याणार्थ कायमी चालु फंडमां दानार्थं
___दाताओने
नम्र विनंति ट्रस्टनुं नाम-'श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण केन्द्र" आ ट्रस्टने अटी जी ना नियमानुसार "कर माफी पत्र" पण मळ्युं छे ६ जेथी दाताओने आ ट्रस्टने आपेली रकम उपर कर-माफी मळे छे. आY एट्रस्टन बेन्कमा खातुं छे सर्व व्यवहार बेन्क मारफत थाय छे. दाताओ चेक अथवा ड्राफ्टथी दान आपी शके छे. “Shree Mahavir Vidyarthi Kalyan-Kendra" ना नामनो चेक लखवा विनंती छे.
आ ट्रस्टना अमुक खाताओमां प्राप्त थयेली रकम कायम राखी मात्र व्याज वापरवामां आवे छे तथा अमुक खाताओमां सीधी रकम धापरवामां है आवे छे. खाताओ नीचे मुजब छे. 2 कायमी खाताओ
चालु खाताओ शिबिर फंड
* साधर्मिक उत्कर्ष खातु ॐ पोस्टल टयुशन फंड
प्रचार खातु ॐ पुस्तकालय-वांचनालय फंड 8 चार्ट-चित्रादि प्रदर्शन खातु
ॐ स्पर्धा-इनामादि फंड ॐ व्याख्यान क्लासादि आयोजन खातु★ &® यात्रादि प्रवास फंड ॐ मांदा-मावजत सहाय खातु ॐ प्रकाशन फंड/चालु खातु ॐ राहत-कार्य खातु
-पुण्यशाली दाताओने विनम्र विनंती करवामां आवे छे के उपरोक्त में खाताओ स्वेच्छाथी योग्य दान-राशि आपीने अमोने शासन सेवा करवानी & उत्तम तक आपो. आपनाज सदयोगे आपनी इच्छा पूर्ण करवा अमे प्रयत्न
शील रहीशु. दाननी आपेल रकम बदल दाताओने पावती लेवा खास से विनंती छे. 232RSXOSOSBUSSOS
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________________ RISASAR A 92525 प. पू. मुनिराज श्री अरुणविजयजी महाराज प्रेरित श्री महावीर विद्यार्थी कल्याण-केन्द्र -दानवीर दाताओने दानार्थे नम्र अपील-- --श्री महावीर शिक्षण शिबिर फंडमां दानार्थे-- ॐकायमी योजनाओ * 2901) आपनार दातानी रकमना व्याजमांथी प्रत्येक शिबिरमा दाता , तरफथी अेक विद्यार्थी कायम भणशे. 2001) शिबिरनी कायमी अंक तिथि खाते. * 1501) आपनार दाता तरफथी शिबिरमां बपोरनुं अक टंकनु उत्तम जमण आपवामां आवशे. 1001) आपनार दाता तरफथी शिबिरमां सांजओक टंकनुं जमण ) आपवामां आवशे. 6 501) नी रकम सर्व सामान्य फंड खाते लेवामां आवशे. आ उपरांत साहित्य-प्रकाशन, प्रचारार्थे, इनामार्थे स्मृति-भेटरुपे, पोस्टल टयुशन, यात्रा-प्रवासार्थे, तथा साधर्मिक-भवित आदि विविध खाताओमा कायमी/अथवा चालु स्वरुपे उदार हाथे अनेक रुपे दान आपी है उत्तम लाभ लेवा दाताओने नम्र विनंती छे. 'सरकयुलेटिंग-लायब्रेरी"Y माटे श्री म. वि. क. क्रेन्द्रने पुस्तको पण भेंट स्वरुपे आपी शकाशे ओक हजार अने तेनी उपरनी रकमना दानवीर दाताओगें नाम श्री म. म. + केन्द्रना प्रकाशनोमा छापवामां आवशे. र अने तेनी उपरनी रकमना दानवीर दाता साधवा विनति के केन्द्रना प्रकाशनोमा छापवामां आवशे... AS क हजार अने तेनी उपरनी रकमना दानक. 'ट्रस्टीओ) जयन्तिलम की केन्द्रना प्रकाशनोमां छापवामां आरहता तदीपचंदगो उपरनी रकमना दानवार दाताआन 'साधी यकिरणभाई काशनोमा छापवामां आवशे.. . . * प्रो. रमणलाल ने तेनी उपरनी रकमना दानवडीया SSCRITASANG संगीता प्रिटिंग प्रेस, छठवां रास्ता, सांताक्रुझ (पूर्व), बम्बई-५५. Seoses OSSOOOOSA S