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________________ इम विलवती राजुल गई रे हां, नेम कने व्रत लीध; वाचक यश कहे प्रणमीये रेहां, भे दंपत्ति दोय सिद्ध ॥६॥ मे.. थोय : राजुल वर नारी, रुपथी रति हारी, तेहना परिहारी, बालथी ब्रह्मचारी; पशुआं उगारी, हुमा चारित्रधारी, केवलश्री सारी, पामीया घाति वारी ॥१॥ २३. श्री पार्श्वनाथ स्वामीनी स्तुति : फळे जेना ध्याने, सकळ मननां इष्ट पळमां, गवायेलो जेनो; सफळ मननां इष्ट पळमां करे जेनी सेवा; धरणपति पद्मावती सदा, हरो पाश्र्वस्वामी मुज हृदयनी सर्व विपदा चैत्यवंदन : .माश पूरे प्रभु पासजी; त्रोडे भवपास; वामा माता जनमीया; महि लछन जास ।।१॥ अश्वसेन सुत सुखकरु नव हाथनी काया; काशी देश वाणारसी; पुण्ये प्रभु आया ||२|| अकसो वरसनु उखुं भे; पाली पास कुमार; पद्म कहे मुक्ते गया; नमतां सुख निरधार ॥३॥
SR No.032202
Book TitleChovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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