SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुगुण सनेहारे कदिय न वीसरे ॥१॥ सु... ईहांथी तिहां जई कोई आवे नहि, जेह कहे संदेशोजी; जेहन मिलवुरे दोहिलं, तेहशुं नेह ते भाप किलेशोजी ॥२॥ सु... वीतराग शुं रे राग ते अक पखो, कीजे कवण प्रकारोजी; घोडो दोडे रे साहिब काजमां, मन नाणे असवारोजी ॥३॥ सु... साची भक्तीरे भावना रस कह्यो, रस हो तिहां दोभे रीझेजी%B होडाहोडेरे बेहु रस रीझथी, मनना मनोरथ सीझेजी ॥४॥ सु... पण गुणवंतारे गोठे गाजीभे, मोटा ते विश्रामोजी; वाचक जश कहे अहीज भाशरो, सुख लहु ठामो ठामजी ॥५॥ सु... थोय: अढीशे धनुष काया, त्यक्त मद मोह माया; सुसीमा जस माया; शुक्ल जे ध्यान ध्याया; केवल घर पाया, चामरादि धराया; सेवे सुर राया; मोक्ष नगरे सधाया ॥१॥ ** * ७. श्री सुपार्श्वनाथ भगवंतनी स्तुति : संसारमा रखडतां बहुकाळ मारो, . भेळे गयो प्रबर धर्म लह्यो न तारो, भाज मळ्यो प्रभु कदी नव नेह छोडूं, सेवा सुपाश्र्व जिननी करी कर्म तोडुं.
SR No.032202
Book TitleChovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy