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(१४) लाख पूरवर्नु भाउखु, नेवु धनुष्य प्रमाण, काया माया टालीने, लह्या पंचम नाण ॥२॥ श्रीवत्स लंछन सुंदरुं , पद पद्म रहे जास, ते जिननी सेवा थकी, लहीसे लील विलास ॥३॥
स्तवन :
श्री शीतल जिन मोहे प्यारा...... 'भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिऊ के जिऊं हमारा ॥१॥ श्री शी.... ज्योतिशुं ज्योत मिलन जब ध्यावे. होवत नहि तब न्यारा; ... बांधी मुठी खुले भव माया, मिटे महाभ्रम भारा ॥२॥ श्री. शी.. तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटंब उदारा. तुम ही नजीक नजीक है सबही, ऋद्धि अनंत अपारा ॥३॥ श्री शी. विषय लगन की अगनी बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा; .. भई मगनता तुम गुण रस की, कुण कंचन कुण दारा ॥४॥ श्री शी. शीतलता गुण होर करत तुम, चंदन काह बिचारा; नामे ही तुम ताप हरत है, वांकु घसत घसारा. ॥५।। श्री शी. करहुं कष्ट जन बहुत हमारे, नाम तिहारो आधारा, जश कहे जनम मरण भय भांगो, तुम नामे भवपारा ॥६॥ श्री शी.
थोय :
शीतल जिन स्वामी, पुण्यथी सेव पामी: प्रभु भातमरामी, सर्व परभाव वामी, जे शिवगति गामी, शाश्वतानंद धामी; भवि शिवसुखकामी, प्रणमीमे शीशनामी ॥१॥