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११. श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तुति :
संसारना त्रिविध तापवडे तप्यो छु, आधि-उपाधि वळी व्याधि वडे बळ्यो छु, भाव्यो जिनेन्द्र ! शरणे मुजने बचावो, श्रेयांसनाथ ! भवसागर पार लावो.
चैत्यवंदन :
श्री श्रेयांस अग्यारमां, विष्णु नृप ताय, विष्णु माता जेहनी, भेशी धनुषनी काय. ॥१॥ घरस चोराशी लाखनुं, पाल्युं जेणे आय, खड़गी लंछन पदकजे, सिंहपुरीनो राय ॥२॥ राज्य तजी दीक्षा वरीओ, जिनवर उत्तम ज्ञान, पाम्या तस पद पद्मने, नमतां अविचल थान ॥ ३ ॥
स्तवन :
तु बहु मैत्री रे साहिबा, मारे तो मन ओक, तुम विण बीजो रे नवि गमे, भे मुज म्होटी रे टेक... श्री श्रेयांस कृपा करो ... ॥१॥ मन राखो तुमे सवि तणां, पण किहां भेक मळी जाओ; ललचाभो लख लोकने, साथी सहेज न थाओ / श्री श्रेयांस ||२|| राग भरे जन मन रहो, पण तिहुं काल वैराग;
चित्त तुमारा रे समुद्रनो, कोई पामे ऐ वाग.. श्री श्रेयांस ॥३॥ मेहवा श्यं चित्त मेळ, केळन्युं पहेला न कांई, सेवक निपट अबूझ छे, निर्बहशो तुमे सांई श्री श्रेयांस ॥४॥
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