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________________ दरिशण दीठे जिन तणुं रे, संशय न रहे वेध; दिनकर कर भर पसरतां रे, अंधकार प्रतिषेध ॥५॥ वि... अमीय भरी मूरती रची रे, उपमा न घटे कोय, शांत सुधारस झीलतीरे, निरखत तृप्ति न होय ॥६॥ वि... मेक अरज सेवक तणी रे, अवधारो जिन देव; कृपा करी मुज दीजीये रे, आनंदघन पदसेव ॥७॥ वि... थोय : विमल जिन जुहारो, पाप संताप वारो; श्यामांब मल्हारो, विश्व कीर्ति विफारो, योजन विस्वारो, जास वाणी प्रसारो; गुण गण भाधारो, पुण्यना से प्रकारो॥१॥ १४. श्री अनंतनाथ भगवाननी स्तुति : हर्षे करी सुरगणो जिनजन्म काले, जई मेरुपर्वत करे अभिषेक भावे; हेते करी स्तवन मंगळ गीत गावे, सेवा अनन्त जिननी करी शांति पावे.
SR No.032202
Book TitleChovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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