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________________ (१८) १३. श्री विमलनाथ भगवंतनी स्तुति : जेनी सुणी कतक चूर्ण समान वाणी, प्राणी तणा विमल थाय विचार वारि; जेथी टले भव भयो सुखशांति थाये. नित्ये नमुं विमलनाथ जिनेन्द्र पाये. चैत्यवंदन : कपिलपुर विमल प्रभु, श्यामा माता मल्हार, कृतवी नृप कुल नभे, उगमियो दिनकार ॥१॥ लंछन राजे वराहनु, साठ धनुषनी काय, साठ लाख वरस तणुं, मायु सुख समुदाय ॥२॥ विमल विमल पोते थया भे, सेवक विमल करेह, तुज पद पद्म विमल प्रति से, धरी ससनेह ॥३॥ स्तवन : दुःख दोहग दूरे टल्यारे, सुख संपदशं भेट, धींगधणी माथे कीयोरे, कुण गंजे नर खेट, विमलजिन दौठा लोयण आज, मारा सिध्या वांछित काज. ॥शावि, चरण कमळ कमला वसेरे, निरमळ थिरपद देख, समल अथिर पद परिहरी रे, पंकज पामर पेख. ॥२॥ वि... मुज मन तुज पद पंकजे रे लीनों गुण मकरंद, रंक गणे मंदरधरारे, इंद्र चंद्र नागिंद्र, ॥३॥ वि.. साहिब समरथ तुं धणी रे, पाम्यो परम उदार; मन विसरामी वालहोरे; मातमनो माधार ॥४॥ वि...
SR No.032202
Book TitleChovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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