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________________ चैत्यवंदन : (२०) अनंत अनंत गुगं आगरु, अयोध्यावासी, सिंहसेन नृप नंदनो, थयो पाप निकासी ॥१॥ सुजसा माता जनमियो, त्रीश लाख उदार. वरस आउखु पालीयुं, जिनवर जयकार ॥२॥ लंछन सींचाणा तणुंभे, काया धनुष पचास, जिन पद पद्म नम्या थकी, लहिये सहज विलास ||३|| स्तवन : धार तलवारनी सोहिली, दोहिली चउदमा जिनतणी चरण सेवा, धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा ॥१॥ ओक कहे सेवी विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे, फल अनेकांत किरिया करी बापडा रडवडे चार गतिमांहि लेखे ॥२॥ गच्छना भेद बहु नयण निहाळतां, तत्वनी वात करतां न लाजे, उदर भरणादि निज काज करतां थका, मोहनडीया कलिकाला राजे ॥३॥ वचन निरपेक्ष व्यवहार जूठो कह्यो, वचन सापेक्ष व्यवहार साचो, वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फल, सांभळी आदरी कांई राचो ॥४॥ देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे, किम रहे शुद्ध श्रद्धा न आणो, शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया कही, छार परे लींपणु तेह जाणो ॥ ५ ॥ पाप नहीं कोई उत्सूत्र भाषण जिश्यु, धर्म नहि कोई जग सूत्र सरिखो सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेनुं शुद्ध चारित्र परखो ॥६॥ मेह उपदेशनो सार संक्षेप थी, जे नर चित्तमें नित्य ध्यावे, ते नरा दिव्य बहुकाल सुख अनुभवी नियत भानंदधन राज पावे ||७|| धार तलवारनी...
SR No.032202
Book TitleChovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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