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२०. श्री मुनिसुव्रत स्वामनी स्तुति : दया लावी अश्वे सुरसहित भाज्या भृगुपुरे, उगार्यो भावीने प्रवर उपदेश प्रभु तमे; हठावी कमाने परमपद पाम्या जगधणी, मने अी सेवा मुनिसुव्रतदेवा चरणानी ।
चैत्यवंदन:
मुनिसुव्रत जिन वीशमा, कच्छपनुं लंछन, . पद्मा माता जेहनी, सुमित्र नप नंदन ॥१॥ राजगृही नयरी धणी, वीश धनुष शरीर, कर्म निकाचित रेणु व्रज, उद्दाम समीर ॥२॥ त्रीश हजार वरसतणु भे, पाली आयु उदार, पदमविजय कहे शिव लह्या, शाश्वत सुख निरधार ॥३॥
स्तवन :
मुनिसुव्रत जिन मन मोहयु माहरु रे, शरण ग्रहयु में तमारु, प्रातः समये जागुं हुं ज्यारे, स्मरण करु छु तमारु, हो जिनजी तुज मुरति मनोहरणी, भवसागर जल तरणी हो॥१॥ आप भरोसो जगमा छे तारो तो घणु सारू, जन्म जरा मरणो करी थाक्यो, आशरो मे लीधो तारो ॥२॥ हो.... चुं चं चीडिया बोले, भजन करे छे तमारु, मूर्ख मनुष्य जे प्रमादे पडीयो छे, नाम जपे नहि तारुं ॥३॥ हो..... भोळा थातां लहु शोर सुन हुं कोई हसे कोई रूवे न्यारू, सुखीयो सुवे ने दुःखीयो रूवे, अकल गति से विचारू ॥४॥ हो...