SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३) १६. श्री शांतिनाथ भगवाननी स्तुति : षट्खंड भूमिपति पंचम चक्रवर्ती, भन्यो तणा परम तारक धर्ममूर्ति, सेवा मने भव भवे मळजो तमारी, श्री शांतिनाथ ! सुणजो विनति अमारी. चैत्यवंदन : शांति जिनेसर सोलमां, अचिरा सुत वंदो, विश्वसेन कुल नभ मणि, भवि जन सुख कंदों ॥१॥ मृग लंछन जिन आउखु, लाख वरस प्रमाण, हथ्थिणाउर नयरी धणी, प्रभुजी गुण मणि खाण ॥२॥ चालीश धनुषनी देहडी भे, सम चउरस संठाण, वदन पद्म ज्यु चंदलो, दीठे परम कल्याण ॥३॥ स्तवन : म्हारो मुजरो ल्योने राज, साहिब शांति सलुणा, अचिराजीना नंदन तोरे, दर्शन हे ते माग्यो। समकित रीझ करोने स्वामी, भगति भेटणं लाग्यो ॥१॥ म्हारो... दुःखभंजन छे बिरुद तुमारो, अमने आशा तुमारी, तुमे निरागी थई ने छूटयो, शी गति होशे अमारी ॥२॥ म्हारो... कहेशे लोक न ताणी कहेवु, अवडं स्वामी आगे; पण बालक जो बोली न जाणो, तो केम व्हालो लागे ॥३॥ म्हारो... म्हारे तो तुं समरथ साहिब, तो केम मोछु मार्नु, चिन्तामणि जेणे गांठे बांध्यु, तेहने काम किश्यानुं ॥४॥ म्हारो.... अध्यातम रवि उग्यो मुज घट, मोह तिमिर हर्यु जुगते, विमळविजय वाचकनो सेवक, राम कहे शुभ भगते ॥५॥ म्हारो....
SR No.032202
Book TitleChovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
Publication Year
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy