Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
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खेल खलकने बंध नाटकनो, कुटुंब कबीलो हुं धारु, जिंहा सुधी स्वारस्थ तिहां सुधी, सर्वे अंत समये सहु न्यारं ।।५।। हो... मायाजाळ वणी जोई जाणी, जगत लागे छे खालं,
उदयरत्न अम जाणी प्रभु, ताहरूं शरण ग्रहयु में साधु ॥६॥ . थोय :
मुनिसुव्रत नामे, जे भवि चित्त कामे, सविसंपत्ति पामे, स्वर्गनां सुख जामे, दुर्गति दुःख वामे, नवि पडे मोह भामे, सर्व कर्म विरामे, जई वसे सिद्धी धामे ॥१॥
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२१. श्री नमिनाथ भगवंतननी स्तुति :
सुणी तारी वाणी भव भयहरी चित्त विकसे, अने देखी मूर्ति ममीय सरती पाप विणसे, भन्यो छु संसारे तुजविण विभो ! चार गतिमा,
महापुण्ये माजे नमिजिन ! हुं आभ्यो शरणमा. चैत्यवंदन : मिथिला नयरी राजीयो, वप्रा सुत साचो, जिजयराय सुव छोडीने, भवर मत माचो ॥२॥ नीलकमल लंछन भलं, पनर धनुषनी देह; नमि जिनवरनु सोहतुं, गुण गण मणिगेह ॥२॥
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