Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
View full book text ________________
(२०)
स्तवन :
पंचम सुरलोकना वासी रे, नवलोकांतिक सुविलासी रे; करे विनंती गुणनीराशी मल्लिनाथ जिननाथ जी व्रत लीजे भविजीवने शिवसुख दीजे ॥१॥ मल्लि.... तुमे करुणारस भंडार रे, पाम्या छो भवजल पार रे, सेवकनो करो उद्धार; ॥२॥ मल्लि... प्रभु दान संवत्सरी आपे रे, जगनां दारिद्र दुःख कापे रे, भव्यत्व पणे तस थापे ॥३॥ मल्लि...... सुरपति सघळा मळि भावे रे, मणि रयण सोवन वरसावे रे, प्रभु चरणे शीश नमावे ॥४॥ मल्लि..... तीर्थोदक कुंभा लावे रे, प्रभुने सिंहासन ठावे रे, सुरपति भक्ते नवरावे ॥५॥ मल्लि ........ वस्त्राभरणे शणगारे रे फुल माला हृदय पर धारे रे, दखडां इन्द्राणि उवारे ॥६॥ मल्लि........ मल्या सुरनर कोडाकोडी रे, प्रभु आगे रह्या कर जोडी रे, करे भक्ति युक्ति मद मोडी ॥७॥ मल्लि..... मृगशिर शुदीनी अजुआली रे, अकादशी गुणनी भाली रे, वया संयमवधु लटकाली ॥८॥ मल्लि..... दीक्षा कल्याणक मेह रे, गाता दुःख न रहे रेह रे, लहे रुपविजय जस नेह ॥९॥ मल्लि ......
थोय :
मल्लिजिन नमीये, पूरवलां पाप गमाये, इंद्रिय गण दमिये, आण जिननी न क्रमीये, भवमा नवि भमीये, सर्व परभाष वमीये, जिन गुणमा रमीये, कर्म मल सर्व धमीये ॥१॥
Loading... Page Navigation 1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58