Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
View full book text ________________
(२६)
१८. श्री अरनाथ स्वामीनी स्तुति :
आनन्द कन्द ! भरनाथ ! सुमेरुधीर, विश्वोपकार-कर ! कर्म-दावाग्निनीर; छोडी छ खंड शिव सौख्य लढ्यु तमे जे,
देता करो किम ? विलंब हवे मने ते. १८. चैत्यवंदन :
नागपुरे अन जिनवर, सुदर्शन नृप नंद, देवी माता जनमीयो, भवि जन सुखकंद ॥१॥ लंछन नंदावर्तन, काया धनुषह त्रीश; सहस चोराशी घरसनु, आयु जास जगीश ॥२॥ अरूज अजर अज जिनवरु से पाम्या उत्तम ठाण,
वस पद पद्म आलंबता, लहीये पद निरवाण ॥३॥ स्तवन :
मारा साहिब श्री अरनाथ अरज सुणो मेक मोरी, परम कृपालु चाकरी चाहुं तोरी, चाकरी चाहुं तोरी, प्रभु गुण गाऊं, सुख अनंता पाउं ॥१॥ परम... जिन भक्ते जे होवे राता, पामे परभव शाता, प्रभु पूजा से माळसु थातां, ते दुःखीया परभव जाता ॥२॥ परम... प्रभु सहायथी पातक भ्रूजे, सारी शुभमति सुजे, ते देखि भवियण प्रतिबूजे, वळी कर्म रोग सवि रुजे ॥३॥ परम... सामान्य नरनी सेवा करी तो पण प्राप्ति थाये, तो त्रिभुवन नायकनी सेवा, निश्चय निष्फळ न जाय ॥४॥ परम... साची सेवा जाणी प्राणी, जे जिनवर आराधे, श्री खिमाविजय पद पामी पुण्ये, जस सुख लहे निराबाघे ॥५॥ परम
Loading... Page Navigation 1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58