Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 27
________________ थोय : अनंत अनंत नाणी, जास महिमा गवाणी, सुरनर तिरि प्राणी, सांभळे जास वाणी; अक वचन समजाणी, जेह स्याद्वाद जाणी; तया ते गुण खाणी, पामीआ सिद्धि राणी ॥१।। १५. श्री धर्मनाथ प्रभुनी स्तुति : संसारमा भ्रमण में बहुकाळ की , दुःखो सह्या विपुल में नथी सौख्य लीधुं, पुण्योदये प्रवर धर्म लह्यो जिनेन्द्र, श्री धर्मनाथ चरणे प्रणमे सुरेन्द्र. चैत्यवंदन : भानुनंदन धर्मनाथ; सुबता भली मात, वज्र लंछन पनि नमे, त्रण भुवन विख्यात ॥१॥ दश लाख वरसनु आउखु, वपु धनु पीस्तालीश, रत्नपुरीनो राजीयो, जगमां नास जगीश ॥२॥ धर्म मारग जिनवर कहीये, उत्तम जन आधार, तेणे तुज पाद पद्म तणी, सेवा करुं निरधार ॥३॥

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