Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha Author(s): Arunvijay Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra View full book textPage 9
________________ (३) चैत्यवदन : भजितनाथ प्रभु अवतर्यो, विनीतानो स्वामी; जितशत्रु विजया तणो, नंदन शिव गामी ॥१॥ बोतेर लाख पूरब तणुं, पाल्यु जिणे माय; गज लंछन लछन नहिः प्रणमे सुर राय ॥२॥ साडा चारशे धनुषनी अ, जिनवर उत्तम देह; पाद पद्म तस प्रणमी, जिम लहीये शिव गेह ॥३॥ स्तवन : प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदा, कांई प्रभु पाखे क्षण एक मने न सुहाय जो; ध्याननी ताली रे लागी नेहरुं, जलदघटा जीम शिवसुख वाहन दायजो. प्रीत......॥१॥ नेह घेलु मन मारु रे, प्रभु मलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी प्रभु मुजजो; मारे तो आधार रे साहिब रावलो, अंतरगतनुं प्रभु भागळ कहुं मुंजजो. प्रीत......॥२॥ साहेब ते साचो रे जगमां जाणीमे, सेवकना ते सहेजे सुधारे काज जो, अहवेते माचरणो केम करीने रहुं, बिरुद तुमारो तारण तरण जहाज जो ॥३॥ तारकता तुज माहे रे श्रवणे सांभळी, ते भणी हुँ माब्यो दीन दयाल जो, तुज करुणानी लहेरे मुज कारज सरे, शुं घणुं कही जाण भागल कृपाल जो ॥४॥ करुणा दृष्टी कीधी रे सेवक उपरे, भव भव भावठ भांगी भक्ति प्रसंग जो, मनवांछित फलीयां रे जिन भालंबने, कर जोडीने मोहन कहे मन रंग जो प्रीतलडी... ॥५॥Page Navigation
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