Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
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(८)
थोय :
सुमति सुमतिदायी, मंगला जाय माई, मेरुने वली राई, ओर मेहने तुलाई; क्षय कीधा घाई, केवलज्ञान पाई; नहिं उणिम कांई, सेविये ते सदाई ॥१॥
६. श्री पद्मप्रभुस्वामीनी स्तुतिः
जेनी सुरम्य प्रतिमां हितबोध मापे, जैनी सुचारु नयनो चिरशांति थापे; सेवा भवोभव विषे पद्मप्रभु केरी,
होजो सदा जिम नडे नहि कर्म वेरी. चैत्यवंदन :
कोसंबीपुर राजियो, धर नरपति ताय, पद्मप्रभु प्रभुता मयी, सुसिमा जस माय ॥ १॥ त्रीश लाख पूरव तणं, जिन भायु पाली धनुष अढीशे देहडी, सबि कर्मने टाली ॥२॥ पद्म लंछन परमेश्वरू में, जिन पद पद्मनी सेव;
पद्मविजय कहे कौजिभे, भविजन सह नित्यमेव ।।३।। स्तवन :
पद्मप्रभु जिन जई अलगा रह्या, जिहांथी नावे लेखोजी, कागल ने मसि तिहां नवि संपजे, न चले वाट विशेषोजी,
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