Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 12
________________ सिद्धारथा जस मावडी, सिद्धारथ जिन राय । साडा अणशें धनुष मान, सुदंर जस काय ॥२॥ विनीता वासी वंदिये से आयु लख पचास । पूरव तस पद पद्मने, नमता शिवपूर वास ॥३॥ स्तवन : अभिनंदन जिन दरिशन तरसीये, दरिशन दुर्लभ देवमत मत भेदे रे जो जई पूछीमे, सहु थापे महमेव, म.-१ सामान्ये करी दरिशन दोहिलु, निर्णय सकल विशेष, मदमें घेयो रे अन्धो किम करे, रवि शशी रुप विलेख, म.-२ हेतु विवादे हो चित्त धरी जोईये, अति दुर्गम नयवाद; आगमवादे हो गुरुगम को नहि मे सबलो विखवाद, भ.३ धाती डुंगर आडा मती घणा, तुज दरिशण जगनाथ; धीठाई करी मारग संचरु, सेंगु कोई न साथ; भ.-४ दरिशण दरिशण जो रटतो फिरूं, तो रण रोज समान; जेहने पिपासा हो अमृतपाननी, किम भांजे विषपान, म.-५. तरस न मावे हो मरण जीवनतणी, सीझे जो दरिशण काज; दरिशण दुर्लभ सुलभ कृपा थकी, आनंदपन महाराज, अ.-. थोय : संवरसुत साचो, जास स्याद्वाद वाचो; थयो हीरो जाचो, मोहने देई तमाचो, प्रभु गुणगण माचो, मेहने ध्याने रायो, जिनपद सुख साचो, भव्य प्राणी निकायो.

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