Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 17
________________ (११) ८. श्री चंद्रप्रभ भगवंतनी स्तुति : शीतांशुथी अधिक शीतल आप स्वामी, छो सूर्यथी अधिक पूर्ण प्रकाश शाली, छे आपनु अगम अद्भुत शुद्ध रूप, चंद्रप्रभ प्रभु पढ़े प्रणमेज भूप । चैत्यवंदन : लक्ष्मणा माता जनमीयो, महसेन जस ताय, उडुपति लंछन दीपत्तो, चंद्रपुरीनो राय ॥१॥ दश लाख पूरव आऊखं, दोढसो धनुषनी देह, सुर नरपति संवा कर, धरता अति ससनेह ।।२॥ चंद्रप्रभ जिन आठमां से, उत्तम पद दातार, पद्मविजय कहे प्रणमीओ, मुज प्रभु पार उतार ॥३॥ स्तवन : चंद्रप्रभु जिन साहिबारे, तमे छो चतुर सुजाण, मनना मान्या; सेवा जाणो दासनीरे, देशो पद निरवाण ॥१॥ आवो आवारे चतुर सुख भोगी, कीजे वात कांते अभोगी। गुण गोटे प्रगटे प्रेम. म. ॥२॥ ओछं अधिकुं पण कहे रे, असंगायत जेह, म. आपे फल जे अण कह्यां रे, गिरओ साहिब तेह मः ॥२॥ दीन कह्या विण दानधीरे, दातानी वाधे माम, म. जल दीये चातक खीजवीरे, मेघ हआ तेणे श्याम. म. ॥३॥ पिऊ पिऊ करी तुमने जपुरे, हुं चातक तुमे मेह, म. अंक लहेरमां दुःख हरोरे, वाधे बमणो नेह म. ॥४॥ मोडुं वहेलुं आपq रे, तो शी ढील कराय, म. वाचक जश कहे जगधणीरे, तुम तूटे सुख थाय म. ॥५॥

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