Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 16
________________ (१०) चैत्यवंदन : . श्री सुपास जिणंद पाश, टाल्यो भव फेरो, पृथिवी माता उरे, जायो नाथ हमेरो ॥१॥ प्रतिष्ठित सुत सुंदरु, वाराणसी राय; वीश लाख पूरव तणु, प्रभुजीनु भाय ॥२॥ धनुष बशे जिन देहडी मे स्वस्तिक लंछन सार; पद पझे जस राजतो, तार तार भव सार ॥३॥ स्तवन : श्री सुपास जिनराज, तुं त्रिभुवन शिरताज, आज हो छाजे रे, ठकुराई प्रभु सुज पदतणीजी ॥१॥ दिव्य ध्वनी सुरफुल, चामर छन्त्र अमूल; भाज हो राजे रे, भामंडल गाजे दुंदुभिजी ॥२॥ अतिशय सहजना चार, करम खप्याथी भग्यार; भाजे हो कीधा रे, ओगणीशे सुरगण भासुरिजी ॥३॥ वाणी गुण पांत्रीश, प्रातिहारज जगदीश. भाज हो छाजे रे, दीवाजे छाजे आठजी ॥४॥ सिंहासन अशोक बेठा माहे लोक, माज हो स्वामीरे, शिवगामी वाचक जश थूण्योजी ॥४॥ थोय: सुपास जिन वाणी. सांभले जेह प्राणी, हृदये पहेंचाणी, ते तया भव्य प्राणी, पांत्रीश गुण खाणी, सूत्रमा जे गुंथाणी, षट् द्रष्यशुं जाणी, कर्म पीले ज्युं धाणी ॥१॥ 888

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