Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra
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निरागीशु रे किम मिले, पण मळबानो मेकांत; वाचक जश कहे मुज मिल्यो, भक्ते कामण तंत...श्री श्रेयांस ॥५॥
थोय :
विष्णु जस मात, जेहना विष्णु तात; प्रभुना अवदात, तीन भुवन में विख्यात; सुरपति संघात, जास निकट आयात; करी कर्मनों घात, पामीया मोक्ष सात ॥१॥
१२. श्री वासुपूज्य स्वामीनी स्तुति : सध्यानथी दुरित सर्व हणी विराजे, जे मुक्तिमा समय सादि अनंत भांगे; . आत्मस्वरूप रमतां सुख आपजोने, श्री वासुपूज्य ! जिनदेव ! दया करोने
चैत्यवंदन :
वासव वंदित वासुपूज्य, चंपापुरी ठाम, . वासुपूज्य कुल चंद्रा, माता जया नाम ॥२॥ महिष लंछन जिन बारमां, सित्तेर धनुष प्रमाण, काया मायु वरस वली, बहोत्तेर लाख वखाण ॥२॥
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