Book Title: Chovish Jina Prachin Stuti Chaityavandan Stavan Thoyadi Sangraha
Author(s): Arunvijay
Publisher: Mahavir Vidyarthi Kalyan Kendra

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Page 6
________________ जीवापिच्छन्ति जीवितं, न मरिजिउं" मा प्रमाणे भगवान महावीरस्वामीने बागमों मां कह्युं छे के "प्राणी मात्र जगतमां जीववा इ . कोई-पण मरवा नथी इच्छतु." माटे परदुःखोत्पादक प्रवृत्ति क्यारे पण करपी योग्य नथी. भावी पायांनी शिखामण अमे कीर्ति ने मापता. भवाढीचौदशनो मे दिवस हतो, सवारे अमने मळया अने पगे लागवा कीर्ति बालकेश्वर ना घरे माग्यो. बाहर जवानी वात करी. अमे कहयु दिवस छता पाछा आवी जजो. रावना गाडी चलाववी नही. कीर्ति कहयु-भाई तमे बिल्कुल फिकर न करो, अमे फरीने वहेला आवी जइ. भाटलं कहीने कीर्तिमे विदाय लीधि . . कोने खबर के छेल्ली विदाय हशे.. के कलाक पछी समाचार भाव्या के लोणावळा जता अकस्मात थयो छे. बधा जल्दी भाषी जाओ.... ' परन्तु मृत्यु कोई नी राह जोती नथी. अमे पहोंची ते पहेला तो कीर्ति चिरयात्रामे पहोंची चुकेलो. साथे रहेला शरदे समाचार भाप्या के दया अने करूणानी भावना थी एक माणसनुं जीवन बचाववा जवा गाडी अंडा खाडामां पडी गई भने आ बनाव बन्यो. कीर्तिकुमार समतापूर्वक नवकार महामंत्रनु स्मरण करता करता हसता मोढे गया... __संस्कार ना वारसाए भावना जगाडी. . . .... चोवीश जिननी भक्ति विविध रीते स्तुति, चैत्यवंदन स्तवन-तथा योयादि द्वारा पण सुंदर रीसे करी. शकाय छ- माटे कीर्ति नी याद मां ममारा दोशी परिवार तरफथी प्रस्तुत पुस्तिका प्रसिद्ध कराई रही छे. माविक मारमानो प्रस्तुत पुस्तिकाना माध्यम थी प्रभुगुण भक्ति करीने नात्मकल्याणं साधो. भेज अभ्यर्थना. HD गाईन न्यु सोसायटी. प्राणलाल के. दोशी.

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