Book Title: Chetna ka Urdhvarohana Author(s): Nathmalmuni Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 19
________________ पर—शरीर को हल्का करना, मन को हल्का करना और श्वास को हल्का करना - जितना बल दिया, उतना शायद किसी बात पर नहीं दिया। हम परिभाषा को तो बहुत पकड़ते हैं पर शायद मर्म को बहुत कम पकड़ते हैं । परिभाषा में शब्दों की पकड़ आती है, मर्म हाथ में नहीं आता । ठीक महावीर जैसी चेतना में प्रवेश करके ही महावीर को समझने का प्रयत्न करें तो फिर शब्द हमारे से दूर रहेंगे | और महावीर की जो मूल बात थी, आत्मा थी, वह हमारी पकड़ में आ जायेगी। महावीर ने हल्का होने का मार्ग बहुत ही सुन्दर ढंग से बतलाया । इन तीनों को हल्का किए बिना किसी को भी हल्का नहीं किया जा सकता । जयन्ती के पूछने पर भगवान महावीर ने बताया कि जीव भारी होता है प्राणातिपात से, हिसा करने से क्या हिंसा करने से जीव भारी होता है ? बहुत स्थूल बात है । और इस स्थूल बात ने हमें एक संकेत दे दिया । और उस संकेत को पकड़कर हम बैठ गये । मैं आपसे कहना चाहता हूं कि हिंसा करने से जीव भारी होता है । यह बहुत छोटी बात है | जीव भारी होता है हिंसा की स्मृति करने से । जयाचार्य ने इस विषय को अपनी शास्त्रीय शैली में बहुत सुन्दर ढंग से प्रतिपादित किया है। जिन कर्मों के उदय से, जिन संस्कारों की स्मृति से कोई हिंसा करता है, प्राणातिपात करता है, वह संस्कार, वह स्मृति प्राणातिपात का मूल है, हिंसा का मूल है । यह बहुत ही मार्मिक बात है। हिंसा की स्मृति वास्तव में हिंसा है । क्रियमाण हिंसा उतनी बड़ी हिंसा नहीं है, जितनी बड़ी हिंसा हिंसा के संस्कार की स्मृति है । क्रियमाण हिंसा की अपेक्षा जो हिंसा हमें भारी बनाती है, हमारी हिंसा फिर उस स्मृति को जोड़ देती है यानी मनुष्य ज्यादा भार ढोता है अतीत की स्मृति का और भविष्य की कल्पना का । भार क्या होता है ? हम करते हैं उस काम का इतना भार नहीं होता जितना भार स्मृति का होता है । आज कोई बड़ा काम आपको करना है । शायद काम करते समय, थोड़ा समय लगेगा। किन्तु उससे स्मृति में इतना भार पैदा हो जायेगा कि बहुत सारे लोग तो उस स्मृति के भार से इतने दब जाते हैं कि उनके काम करने की शक्ति भी बहुत कम हो जाती है। कल्पना कीजिए कि पांच साध्वियां हैं । और पचीस साध्वियां बाहर से आ जाती हैं। इन पांचों को यह चिन्ता होती है कि आतिथ्य करना है । तो वह आतिथ्य करने की कल्पना का भार उस स्मृति का भार इतना बोझिल बन जाता है कि शायद उनकी काम करने की क्षमता कम हो जाती है । हमारे सामने बहुत सारे ऐसे काम आते हैं, बहुत सारे प्रसंग आते हैं कि काम करना उतना जटिल नहीं होता, काम उतना दुरूह नहीं होता और काम हम कर डालते हैं । किन्तु स्मृति इतनी जटिल, इतनी दुरूह और इतनी बोझिल बन जाती है कि चेतना का जागरण : ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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