Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 17
________________ वृत्तियां-ये जो अधम बनते हैं, निम्न बनते हैं, निकृष्ट कोटि के बनते हैं, वे भारीपन के कारण बनते हैं। तुम्बी जब भार से मुक्त हो गयी, बंधन से विच्छिन्न हो गयी, लेप से रहित हो गयी, ऊपर आ गयी। जीव भी जब हल्का होता है, ऊपर आ जाता है। अर्ध्वगति करता है। उसका ऊर्ध्व चिन्तन, उत्तम विचार और उत्तम आचरण, ये जो सारे बनते हैं वे अपने ही हल्केपन के कारण बनते हैं और हल्केपन की ये सहज निष्पत्तियां हैं, जिन्हें रोका नहीं जा सकता। ___अग्नि जलती है और शिखा ऊपर की ओर जाती है। कारण क्या है ? लघुता के कारण वह ऊपर की ओर जाती है। एरण्ड की फली से बीज उछलता है, वह ऊपर की ओर चला जाता है। हम ठीक समझें भगवान की वाणी में, अपने अनुभवों के आधार पर और अपनी दृष्टि के कारण । जहां कहीं भी देखें। चाहे शरीर का प्रश्न है, चाहे विचार का प्रश्न है, चाहे चिन्तन का प्रश्न है, जहां भी भार आया, भार अनुभव हुआ, आदमी नीचे चला जायेगा और जहां भार-मुक्ति का अनुभव हुआ, आदमी ऊपर उठ जायेगा। लाघव और गौरव, लघुता और गुरुता, हल्कापन और भारीपनये दोनों दृष्टियां हमारे सामने बहुत स्पष्ट हैं, और हम समझ सकते हैं कि हमारी चेतना का जागरण, हमारी चेतना की ऊर्ध्वगति, तभी हो सकती है जबकि हमारे जीवन में, हमारे परिपार्श्व में और हमारी वृत्तियों में, सबमें लघुता आये और हल्कापन आये। यह लघुता और गुरुता का विवेक हमारे सामने प्रस्तुत है । हमारे जीवन का आनन्द, हमारे जीवन का आलोक, हमारे जीवन की निश्छलता और हमारे जीवन की पवित्रता जहां प्रकट होती है, उसका केन्द्र-बिन्दु या उसकी रेखा हल्केपन की रेखा है, लघुता की रेखा है। वहां से हमारी चेतना का ऊर्ध्वारोहण प्रारंभ होता है। और जहां गौरव की रेखा है, भारीपन की रेखा है, वहां से हमारी चेतना का अधोवतरण प्रारंभ होता है। ___अब प्रश्न यह है कि हल्कापन कैसे आये ? भारीपन को हम कैसे समाप्त करें ? यहां से सारी साधना की पद्धति शुरू होती है। यह साधना का विवेक है, साधना की पृष्ठभूमि है । यह साधना की दृष्टि को समझने का हमारा प्रयत्न है। यह है साधना की पद्धति का आदि-बिन्दु, जहां से साधना प्रारंभ होती है। हल्का हम कैसे करें और किसे करें? जो भारी होते हैं, उन्हीं को हल्का करना है। क्योंकि भारी करने में, हल्का करने में हमारा विवेक होना चाहिए। ___ आदमी काफ़िला लिये जा रहा था माल का। कुछ गधे थे, कुछ घोड़े थे साथ में । बीच में नदी आयी। एक घोड़ा जिस पर नमक की बोरी लदी हुई थी, बैठ गया। नदी में था पानी । सारा नमक भीग गया। थोड़ी देर में रिस-रिसकर बहने लगा। बोरी खाली हो गयी। घोड़ा हल्का हो गया । गधे ने सोचा, 'अच्छा उपाय चेतना का जागरण : ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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