Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 15
________________ घूमता-घूमता जंगल में गया। खेतों-खलिहानों में गया। वहां उसने देखा एक किसान, खेती करनेवाला, कृषि करनेवाला। उसकी आंखों में देखा तो ऐसा लगा कि परमात्मा झांक रहा है। उसने उसका एक चित्र बनाया। चित्र इतना सुन्दर, मोहक और आकर्षक बना कि हज़ारों-हजारों की संख्या में वह बिका और बहत ही प्रिय चित्र बन गया। लोगों में उसकी प्रशंसा हुई और लोगों ने उसे बहुत पसन्द किया। __कुछ दिन बाद फिर उसने सोचा कि अब मुझे एक ऐसा चित्र बनाना चाहिए कि जिसकी आंखों में शैतान झांक रहा हो। इस खोज में भी निकला। उसने काफ़ी खोज की 1 देखता रहा। पर आप जानते हैं कि हर आदमी की आंखों से न परमात्मा झांकता है और न हर आदमी की आंखों से शैतान झांकता है। वैसे लोग भी कम होते हैं जिनकी आंखों से परमात्मा झांकता हो और ऐसे लोग भी कम मिलते हैं जिनकी आंखों से सीधा शैतान झांकता हो । आदमी छिपाना जानता है। इसलिए छिपा लेता है । आखिर में वह घूमते-घमते एक कारागृह में पहुंचा। वहां उसने देखा एक कैदी को । देखा। उस कैदी की आंखों से शैतान झांक रहा था। उसने देखा और उसका चित्र बनाया। इतना भयानक चित्र बना कि शैतान क्या झांक रहा था, मानो कि हत्याएं बोल रही थीं। प्रत्यक्ष हत्याकांड बोल रहे थे । चित्र भी ठीक वैसा ही बना क्योंकि वह कुशल चित्रकार था। वह चित्र लेकर कैदी के पास गया। पहला चित्र भी कैदी ने देखा और दूसरा चित्र भी। कैदी ने देखा अपना चित्र! कितना भयानक ! कितना दारुण ! चित्रकार बोला, "देखो ! यह तुम्हारा चित्र है।" उसने गौर से देखा। उसकी भयानकता को देखा और वह हंस पड़ा। चित्रकार ने पूछा-"बन्धु ! हंसते क्यों हो ?" उसने कहा-"क्या रोऊं? कैसे रोऊं ? हंसू कैसे नहीं ? तुम इस भयानक चित्र को मुझे दिखला रहे हो पर तुम्हें यह पता नहीं है कि जिस चित्र में परमात्मा झांक रहा है, वह चित्र भी मेरा ही है। दोनों मेरे ही चित्र हैं। अब मैं क्या करूं? रोऊ या हंसं ?" आप देखें कि जिस व्यक्ति की आंखों में परमात्मा झांकता है, उसी व्यक्ति की आंखों से शैतान भी झांक सकता है और जिस व्यक्ति की आंखों से शैतान झांकता है, उस व्यक्ति की आंखों से परमात्मा भी झांक सकता है। परमात्मा कहीं नहीं है, शैतान भी कहीं नहीं है। हर व्यक्ति की आत्मा में, हर व्यक्ति के जीवन में परमात्मा भी उपस्थित होता है और शैतान भी उपस्थित होता है। परमात्मा की उपस्थिति हमारी ही उपस्थिति है और शैतान की उपस्थिति भी हमारी ही उपस्थिति है। किन्तु ये दोनों बातें कब होती हैं ? परमात्मा की उपस्थिति तब होती है जब हमारे भीतर का हल्कापन, लाघव उपस्थित होता है। जब हमारे भीतर का भारीपन उपस्थित होता है तब शैतान की उपस्थिति हो चेतना का जागरण : ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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