Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ (३ ) वो पत्र नगर शेठजीने मुनि श्रीवात्मारामजीके पास नेजा उनोने बांचा परंतु वो पत्र अजीतरे शु६ लखा दूया नहीथा, इसवास्ते महाराजने पीबा शेठजीकों दे दीया और शेठजीकों कहाके आप रत्नविजय जीकों कहना के तीन थुक्के निर्णयवास्ते हमारे साथ सना करो.तब श्रीमन्नगरशेत प्रेमानाजीने रत्न विजयजीकों सना करनेके वास्ते कहला नेजा, जब रत्नविजय, धनविजयजी यह दोनो नगरशेतके वंमेमें याकर शेठजीकों कह गये के हम सना नही करेंगे. कितनेक दिनो पीडे मेवाडदेशमें सादडी, राणक पुर और शिवगंजादि स्थानोसें पत्र आये तिसमें ऐसा लेख आया के अहमदाबादमें सना दुइ तिसमें रत्नविजयजी जीत्या और आत्मारामजी दास्या, ऐसी अफवा सुनके नगरशेठजीने सर्व संघ एकता करके ति नको सम्मतसें एक पत्र उपवाय कर बहोत गामो के श्रावकोंको नेज दीया तिसकी नकल यहां लिखते है. - "एतान् श्री अमदाबादथी ली० शेत प्रेमाना हेमाना तथा शेठ हतीसंघ केसरीसंघ तथा शेठ जय सिंघनाइ हतीसंघ तथा शेव करमचंद प्रेमचंद तथा शेठ नगुनाइ प्रेमचंद वगैरे संघसमस्तना प्रणाम वांचवा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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