Book Title: Chaturthstuti Nirnay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ (२) मतके नामसेंनी प्रस्तुत अनेक प्रकारके पुरुषोने अनेक तहेके मत उत्पन्न करेथे तिनमेंसें कितनेक तो नष्ट हो गये, अरु कितनेक वर्तमान कालमें विद्यमान है, इतनेपरजी संतोष न नयाके अबतो बस करे ? __ आगेही बहुत जनोने जैनमतके नामसें जैन मतकों चालनी समान निन्न निन्न मार्गका प्रचार कर ररका है. इतनाही बहोत हूया तो फेर अब हम काहेकों नवीन मत निकाले ? ऐसी बुद्धि जि नोमें नही है वे अबनी नवीन पंथ निकालनेंमें उ द्यम करते हैं. संप्रतिकालमें तपगबके यति रत्नवि जयजी अरु धन विजयजीने तीन थुश्का पंथ निकाल ररका है यह दोनो यतिने तीन थुई आदिक कितनीक वातों उत्सूत्र प्ररूपणा करके मालवे और जालोरके जिल्नमें कितनेक नोले श्रावकोंके मनमे स्वकपोलक विपतमतरूप नूतका प्रवेश कराय दीया है. ये यती संवत् १ ए४० की सालमें गुजरात देशका सहेर अ मदाबादमें चोमासा करणेकों आये,जब मुनि श्रीया त्मारामजीका चोमासाजी अहमदावादमें हुआथा. तिस वखत रत्न विजयजीने एक पत्रमें कितनेक प्रश्न लिखके श्रीमन्नगरशेवजी प्रेमाला योग्य नेजे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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