Book Title: Chahdhala
Author(s): Maganlal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 15
________________ २० मोह : लोक : छहढाला पर के साथ एकत्वबुद्धि से मिथ्यात्वमोह है; यह मोह अपरिमित है तथा अस्थिरतारूप रागादि सो चारित्रमोह है; यह मोह परिमित है । जिसमें जीवादि छह द्रव्य स्थित हैं, उसे लोक अथवा लोकाकाश कहते हैं। विमानवासी :- स्वर्ग और ग्रैवेयक आदि के देव । वीतराग का लक्षण - जन्म', जरा', तिरखार, क्षुधा, विस्मय, आरत, खेद" । रोग, शोक, मद, मोह, भय, निद्रा, चिन्ता ४, स्वेद ५ । राग, द्वेष, अरु मरण" जुत, ये अष्टदश दोष । नाहिं होत जिस जीव के, वीतराग सो होय ।। श्वास :- रक्त की गति प्रमाण समय, कि जो एक मिनट में ८० बार से कुछ अंश कम चलती है। सागर :- दो हजार कोस गहरे तथा इतने ही चौड़े गोलाकार गड्ढे को, कैंची से जिसके दो टुकड़े न हो सके ऐसे तथा एक से सात दिन की उम्र के उत्तम भोगभूमि के मेंढे के बालों से भर दिया जाये। फिर उसमें से सौ-सौ वर्ष के अंतर से एक बाल निकाला जाये। जितने काल में उन सब बालों को निकाल दिया जाये, उसे 'व्यवहार पल्य' कहते हैं; व्यवहार पल्य से असंख्यातगुने समय को 'उद्धारपल्य' और उद्धारपल्य से असंख्यातगुने काल को 'अद्धा पल्य' कहते हैं। द कोड़ाकोड़ी (१० करोड़ -- १० करोड़) अद्धा पल्यों का एक सागर होता है। संज्ञी :- शिक्षा तथा उपदेश ग्रहण कर सकने की शक्तिवाले मनसहित प्राणी । स्थावर :- स्थावर नामकर्म के उदय सहित पृथ्वी-जल- अग्नि वायु तथा वनस्पतिकायिक जीव । 15 पहली ढाल २१ अन्तर- प्रदर्शन (१) त्रस जीवों को त्रस नामकर्म का उदय होता है, परन्तु स्थावर जीवों को स्थावर नामकर्म का उदय होता है। दोनों में यह अन्तर है। नोट :- त्रस और स्थावरों में, चल सकते हैं और नहीं चल सकते इस अपेक्षा से अन्तर बतलाना ठीक नहीं है; क्योंकि ऐसा मानने से गमन रहित अयोगीकेवली में स्थावर का लक्षण तथा गमन सहित पवन आदि एकेन्द्रिय जीवों में त्रस का लक्षण मिलने से अतिव्याप्ति दोष आता है। (२) साधारण के आश्रय से अनन्त जीव रहते हैं, किन्तु प्रत्येक के आश्रय से एक ही जीव रहता है। (३) संज्ञी तो शिक्षा और उपदेश ग्रहण कर सकता है, किन्तु असंज्ञी नहीं । नोट :- किन्हीं का भी अन्तर बतलाने के लिए सर्वत्र इस शैली का अनुकरण करना चाहिए; मात्र लक्षण बतलाने से अन्तर नहीं निकलता । पहली ढाल की प्रश्नावली (१) असंज्ञी, ऊर्ध्वलोक, एकेन्द्रिय, कर्म, गति, चतुरिन्द्रिय, त्रस, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, अधो लोक, पंचेन्द्रिय, प्रत्येक, मध्यलोक, वीतराग, वैक्रियिक शरीर, साधारण और स्थावर के लक्षण बतलाओ । (२) साधारण ( निगोद) और प्रत्येक में, त्रस और स्थावर में, संज्ञी और असंज्ञी में अन्तर बतलाओ । (३) असंज्ञी तिर्यंच, त्रस, देव, निर्बल, निगोद, पशु, बाल्यावस्था, भवनत्रिक, मनुष्य, यौवन, वृद्धावस्था, वैमानिक, सबल, संज्ञी, स्थावर, नरकगति, नरक सम्बन्धी भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी, भूमिस्पर्श तथा असुरकुमारों के दुःख; अकाम निर्जरा का फल, असुरकुमारों का कार्य तथा गमन; नारकी के शरीर की विशेषता और अकाल मृत्यु का अभाव, मंदारमाला, वैतरणी तथा शीत से लोहे के गोले का गल जाना इनका स्पष्ट वर्णन

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