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छहढाला
तीसरी ढाल
द्रव्यकर्म :- ज्ञानावरणादि आठ। नोकर्म :
औदारिक, वैक्रियिक और आहारकादि शरीर । परिग्रह :- अन्तरंग और बहिरंग। प्रमाद :
४ विकथा, ४ कषाय, ५ इन्द्रिय, १ निद्रा, १ प्रणय
(स्नेह)। बहिरंग परिग्रह :- क्षेत्र, मकान, सोना, चाँदी, धन, धान्य, दासी, दास,
वस्त्र और बर्तन - ये दस हैं। भावकर्म :- मिथ्यात्व, राग, द्वेष, क्रोधादि। मद:
आठ प्रकार के हैं :जाति लाभ कुल रूप तप, बल विद्या अधिकार।
इनको गर्व न कीजिये, ये मद अष्ट प्रकार ।। मिथ्यात्व :- विपरीत, एकान्त, विनय, संशय और अज्ञान । रस :
खारा, खट्टा, मीठा, कड़वा, चरपरा और कषायला। रूप:
(रंग) - काला, पीला, नीला, लाल और सफेद -
ये पाँच रूप हैं। स्पर्श :
हलका, भारी, रूखा, चिकना, कड़ा, कोमल, ठण्डा
गर्म - ये आठ स्पर्श हैं।
तीसरी ढाल का लक्षण-संग्रह अनायतन:- कुगुरु, कुदेव, कुधर्म और इन तीनों के सेवक - ये
छहो अधर्म के स्थानक। अनायतन दोष :- सम्यक्त्व का नाश करनेवाले कुदेवादि की प्रशंसा
करना। अनुकम्पा :- प्राणी मात्र पर दया का भाव। अरिहन्त :- चार घातिकर्मों से रहित, अनन्तचतुष्टय सहित वीतराग
और केवलज्ञानी परमात्मा। अलोक :- जहाँआकाश के अतिरिक्त अन्य द्रव्य नहीं है, वहस्थान। अविरति :- पापों में प्रवृत्ति अर्थात् १. निर्विकार स्वसंवेदन से
विपरीत अव्रत परिणाम, २. छह काय (पाँचों स्थावर तथा एक त्रसकाय) जीवों की हिंसा के त्यागरूप भाव न होना तथा पाँच इन्द्रिय और मन के विषयों में प्रवृत्ति
करना - ऐसे बारह प्रकार अविरति है। अविरति सम्यग्दृष्टि :- सम्यग्दर्शन सहित, किन्तु व्रतरहित - ऐसे चौथे
गुणस्थानवी जीव। आस्तिक्य :- जीवादि छह द्रव्य, पुण्य और पाप, संवर, निर्जरा,
मोक्ष तथा परमात्मा के प्रति विश्वास, सो आस्तिक्य
कहलाता है। कषाय:
जो आत्मा को दुःख दे, गुणों के विकास को रोके तथा परतंत्र करे, वह । यानी मिथ्यात्व तथा क्रोध,
मान, माया और लोभ - ये कषायभाव हैं। गुणस्थान :- मोह और योग के सद्भाव या अभाव से आत्मा के
गुणों (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र) की हीनाधिकतानुसार होनेवाली अवस्थाओं को गुणस्थान कहते हैं।
(वरांगचरित्र, पृष्ठ ३६२)। घातिया :- अनन्त चतुष्टय को रोकने में निमित्तरूप कर्म को घातिया
कहते हैं। चारित्रमोह :- आत्मा के चारित्र को रोकने में निमित्त, सो मोहनीयकर्म । जिनेन्द्र :- चार घातिया कर्मों को जीतकर केवलज्ञानादि अनन्त
चतुष्टय प्रकट करनेवाले १८ दोषरहित परमात्मा। देवमूढ़ता :- भय, आशा, स्नेह, लोभवश रागी-द्वेषी देवों की
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