Book Title: Chahdhala
Author(s): Maganlal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 81
________________ १५२ उपयोग का विचार और दशा, सकलचारित्र, सिद्धों की आयु निवास स्थान और समय तथा स्वरूपाचरणचारित्रादि का वर्णन करो। छहढाला ८. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, देशचारित्र, सकलचारित्र, चार गति, स्वरूपाचरणचारित्र, बारह व्रत, बारह भावना, मिथ्यात्व और मोक्षादि विषयों पर लेख लिखो । ९. दिगम्बर जैन मुनि का भोजन, समता, विहार, नग्नता से हानि-लाभ; दिगम्बर जैन मुनि को रात्रिगमन का विधि या निषेध, दिगम्बर जैन मुनि को घड़ी, चटाई (आसन) या चश्मा आदि रखने का विधि या निषेध - आदि बातों का स्पष्टीकरण करो । १०. अमुक शब्द, चरण और छन्द का अर्थ या भावार्थ कहो। आठवीं ढाल का सारांश बतलाओ । इति कविवर पंडित दौलतराम विरचित छहढाला के गुजराती अनुवाद का हिन्दी अनुवाद देखो जी आदीश्वर स्वामी, कैसा ध्यान लगाया है। कर ऊपर कर सुभग विराजै, आसन थिर ठहराया है। टेक ॥। जगत विभूति भूति सम तजकर, निजानन्द पद ध्याया है। सुरभि श्वासा आशावासा, नासा दृष्टि सुहाया है ।।१ ॥ कंचन वरन चले मन रंच न सुर-गिरि ज्यों थिर थाया है। जास पास अहि मोर मृगी हरि, जाति विरोध नशाया है ।। २ ।। शुध-उपयोग हुताशन में जिन, वसुविधि समिध जलाया है। श्यामलि अलकावलि सिर सोहे, मानो धुआँ उड़ाया है ।। ३ ।। जीवन-मरन अलाभ-लाभ जिन, सबको नाश बताया है। सुर नर नाग नमहिं पद जाके “दौल" तास जस गाया है ।।४ ॥ 81 छठवीं ढाल १५३

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