________________
३०
श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [प्रथम अधिकार ह्येकद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियभेदेन पञ्चप्रकारेन्द्रियमार्गणा । २ । अशरीरात्मतत्त्वविसदृशी पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतित्रसकायभेदेन षड भेदा कायमार्गणा । ३। निर्व्यापारशुद्धात्मपदार्थविलक्षणमनोवचनकाययोगभेदेन त्रिधा योगमार्गणा, अथवा विस्तरेण सत्यासत्योभयानुभयभेदेन चतुर्विधो मनोयोगो वचनयोगश्च, औदारिकौदारिकमिश्रवैक्रियिक मिश्राहारकाहारकमिश्रकार्मणकायभेदेन सप्तविधो काययोगश्चेति समुदायेन पञ्चदशविधा वा योगमार्गणा । ४ । वेदोदयोद्भवरागादिदोषरहितपरमात्मद्रव्याद्धिन्ना स्त्रीपुंनपुंसकभेदेन त्रिधा वेदमार्गणा । ५। निष्कषायशुद्धात्मस्वभावप्रतिकूलक्रोधलोभमायामानभेदेन चतुविधा कषायभार्गणा, विस्तरेण कषायनोकषायभेदेन पञ्चविंशतिविधा वा।६। मत्यादिसंज्ञापञ्चकं कुमत्याद्यज्ञानत्रयं चेत्यष्टविधा ज्ञानमार्गणा । ७ । सामायिकच्छेदोपस्थापनपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातभेदेन चारित्रं पञ्चविधम्, संयमासंयमस्तथैवासंयमश्चेति प्रतिपक्षद्वयेन सह सप्तप्रकारा संयममार्गणा । ८ । चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनभेदेन चतुर्विधा दर्शनमार्गणा ।। ९ । कषायोदयरञ्जितयोगप्रवृत्तिविसदृशपरमात्मद्रव्यप्रतिपन्थिनी कृष्णनीलकापोततेजःपद्मशुक्लभेदेन षड्विधा लेश्यामार्गणा । १० । भव्याभव्यभेदेन द्विविधा भव्यमार्गणा । ११ । अत्राह शिष्यः-शुद्धपारिणामिकपरमभावरूपशुद्धनिश्चयेन गुणस्थानमार्गणा
जो शुद्ध आत्मतत्त्व है उसके प्रतिपक्षभूत एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय भेदसे इन्द्रियमार्गणा पाँच प्रकारकी है । २ । शरीररहित आत्मतत्त्वसे भिन्न स्वरूपकी धारक पृथिवी, जल, तेज, वायु, वनस्पति और त्रस कायभेदसे कायमार्गणा छः प्रकारको होती है | ३ | व्यापाररहित शुद्ध आत्मतत्त्वसे विलक्षण मनोयोग, वचनयोग तथा काययोग इन भेदोस योग मार्गणा तीन प्रकारकी है। अथवा विस्तारसे सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग, सत्यासत्यमनोयोग और सत्यासत्यमनोयोगसे विलक्षण मनोयोग इन भेदोंसे चार प्रकारका मनोयोग है। ऐसे ही सत्य, असत्य, सत्यासत्य तथा सत्यासत्यविलक्षण इन चार भेदोंसे वचनयोग भी चार प्रकारका है । एवम् औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण इन भेदोंसे काययोग सात प्रकारका है। सब मिलकर योगमार्गणा पन्द्रह प्रकारको हुई। ४ । वेदके उदयसे उत्पन्न होनेवाले रागादि दोषोंसे रहित जो परमात्मद्रव्य है उससे भिन्न स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद इन भेदोंसे वेदमार्गणा तीन प्रकारको है । ५ । कषायोंसे रहित शुद्ध आत्माके स्वभावसे प्रतिकूल ( विरुद्ध ) क्रोध, मान, माया तथा लोभ इन भेदोंसे चार प्रकारका कषायमार्गणा है। और विस्तारसे अनन्तानुबंधी, प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान तथा संज्वलन भेदसे कपाय १६ और हास्यादि भेदसे नोकषाय ९ सब मिलकर पच्चीस प्रकारकी कषायमार्गणा है । ६। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ये पाँच ज्ञान तथा कुमति, कुश्रुत और विभंगावधि ये तीन अज्ञान ऐसे ८ प्रकारकी ज्ञानमार्गणा है। ७ । सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय तथा यथाख्यात भेदसे पाँच प्रकारका चारित्र और संयमासंयम तथा असंयम ये दो प्रतिपक्ष ऐसे संयममार्गणा सात प्रकारकी है। ८ । चक्षुः, अचक्षुः, अवधि और केवलदर्शन इन भेदोंसे दर्शनमार्गणा चार प्रकारकी है । ९ । कषायोंके उदयसे रंजित ( रँगी हुई) जो काय आदि योगोंको प्रवृत्ति है उससे भिन्न जो शुद्ध आत्मतत्त्व है उससे विरोध करनेवाली कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल इन भेदोंसे ६ प्रकारकी लेश्यामार्गणा है । १० । भव्य और अभव्य भेदसे भव्यमार्गणा दो प्रकारकी है । ११ । यहाँ शिष्य प्रश्न करता है कि 'शुद्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org