Book Title: Bruhaddravyasangrah
Author(s): Nemichandrasuri, Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 195
________________ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ तृतीय अधिकार किंवत् स्वयमनुभूयमानसुखदुःखादिवदिति दृष्टान्तवचनम् । एवं सर्वज्ञसद्भावे पक्षहेतुदृष्टान्तरूपेण व्यङ्गमनुमानं विज्ञेयम् । अथवा द्वितीयमनुमान कश्यते-रामरावणादयः कालान्तरिता, मेदियो देशान्तरिता, भूतादयः स्वभावान्तरिताः, परचेत्तोवृत्तयः परमाण्वादयश्च सूक्ष्मपदार्था, धर्मिणः कस्यापि पुरुषविशेषस्य प्रत्यक्षा भवन्तीति साध्यो धर्म इति धर्मिधर्मसमदायेन पक्षवचनम् । कस्मादिति चेत्-अनुमानविषयत्वादिति हेतुवचनम् । किंवत् यद्यदनुमानविषयं तत्तत् कस्यापि प्रत्यक्ष भवति, यथाग्न्यादि, इत्यन्वयदृष्टान्तवचनम् । अनुमानेन विषयाश्चेति, इत्युपनयवचनम् । तस्मात् कस्यापि प्रत्यक्षा भवन्तीति निगमनवचनम् । ___ इदानों व्यतिरेकदृष्टान्तः कथ्यते-यन्न कस्यापि प्रत्यक्षं तदनुमानविषयमपि न भवति यथा खपुष्पादि, इति व्यतिरेक दृष्टान्तवचनम् । अनुमानविषयाश्चेति पुनरप्युपनयवचनम्। तस्मात् प्रत्यक्षा भवन्तीति पुनरपि निगमनवचन मिति । किन्त्वनुमानविषयत्वादित्ययं हेतुः सर्वज्ञस्वरूपे साध्ये सर्वप्रकारेण सम्भवति यतस्ततः कारणात्स्वरूपासिद्धभावासिद्धविशेषणाद्यसिद्धो न भवति । तथैव सर्वज्ञस्वरूपं स्वपक्षं विहाय सर्वज्ञाऽभावं विपक्षं न साधयति तेन कारणेन विरुद्धो न भवति । तथैव च यथा सर्वज्ञसद्भावे स्वपक्षे वर्तते तथा सर्वज्ञाभावेऽपि विपक्षेऽपि न वर्तते तेन कारणेनाऽनैकान्तिको न भवति । अनैकान्तिकः कोऽर्थो व्यभिचारीति । तथैव प्रत्यक्षादिप्रमाणबाधितो न कथन है। इस प्रकार सर्वज्ञके सद्भाव (होने) में पक्ष, हेतु तथा दृष्टान्तरूपसे तीन अंगका धारक अनुमान जानना चाहिये । अथवा सर्वज्ञके सद्भावका साधक दूसरा अनुमान कहते हैं। राम और रावण आदि कालसे दूर वा ढके हुए पदार्थ, मेरु आदि देशसे अन्तरित पदार्थ, भूत आदि अपने स्वभावसे ही ढंके हुए पदार्थ, तथा पर पुरुषोंके चित्तोंके विकल्प और परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थरूप धर्मी हैं । किसी भी पुरुषविशेषके प्रत्यक्ष देखने में आते हैं' यह उन राम रावणादि धर्मियोंमें सिद्ध करने योग्य धर्म है; इस प्रकार धर्मी और धर्मके समुदायसे पक्षवचन अथवा प्रतिज्ञा है । राम रावणादि किसीके प्रत्यक्ष क्यों हैं ? ऐसी शंकाको दूर करनेके लिये 'अनुमानके विषय होनेसे यह हेतु वचन है । किसके समान ? 'जो जो अनुमानका विषय है वह वह किसीके प्रत्यक्ष होता है जैसे, अग्नि आदि' यह अन्वय दृष्टान्तका वचन है । और 'देश काल आदिसे अंतरित पदार्थ भी अनुमानके विषय हैं' यह उपनयका वचन है। इसलिये "राम रावण आदि किसीके प्रत्यक्ष होते हैं। यह निगमन वाक्य है। अब व्यतिरेक दृष्टान्तको कहते हैं—'जो किसीके भी प्रत्यक्ष नहीं होते वे अनुमानके विषय भी नहीं होते;' जैसे कि, 'आकाशके पुष्प आदि' यह व्यतिरेक दृष्टान्तका वचन है। और 'राम रावण आदि अनुमानके विषय है' यह फिर उपनयका वचन है। इसलिये 'राम रावणादि किसीके प्रत्यक्ष होते हैं' यह फिर निगमन वाक्य है। और "रामरावणादि किसीके प्रत्यक्ष होते हैं अनुमानके विषय होनेसे" यहाँपर 'अनुमानके विषय होनेसे' यह जो हेतु है वह सर्वज्ञरूप जो साध्य धर्म है उसमें सर्व प्रकारसे रहता है इस कारण यह उक्त हेतु स्वरूपासिद्ध भावासिद्ध तथा विशेषण आदिसे असिद्ध नहीं है। तथा उक्त हेतु-सर्वज्ञरूप जो अपना पक्ष है उसको छोड़कर सर्वज्ञका अभावस्वरूप जो विपक्ष है उसको सिद्ध नहीं करता है। इस कारण विरुद्ध भी नहीं है। और जैसे 'सर्वज्ञके सद्भावरूप अपने पक्षमें नहीं रहता है वैसे सर्वज्ञके अभावरूप विपक्षमें नहीं रहता है; इस कारण उक्त हेतु अनैकान्तिक अर्थात् व्यभिचारी भी नहीं है । और प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे बाधित नहीं है; इसलिये कालात्ययापदिष्ट भी नहीं है । तथा सर्वज्ञको न माननेवाले जो भट्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228