Book Title: Bruhaddravyasangrah
Author(s): Nemichandrasuri, Manoharlal Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ मोक्षमार्ग वर्णन] बृहद्रव्यसंग्रहः व्याख्यातमिति चेद्व्यवहारसम्यक्त्वेन निश्चयसम्यक्त्वं साध्यत इति साध्यसाधकभावज्ञापनार्थमिति ॥ इदानीं येषां जीवानां सम्यग्दर्शनग्रहणात्पूर्वमायुर्बन्धो नास्ति तेषां व्रताभावेऽपि नरनारकादिकुत्सितस्थानेषु जन्म न भवतीति कथयति । "सम्यग्दर्शनशुद्धा नारकतिर्यग्नपुंसकस्त्रीत्वानि । दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां च वजन्ति नावतिकाः।१।" इतः परं मनुष्यगतिसमुत्पन्नसम्यग्दृष्टः प्रभावं कथयति । "ओजस्तेजोविद्यावीर्ययशोवृद्धिविजयविभवसनाथाः। उत्तमकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूताः । १।" अथ देवगतौ पुनः प्रकीर्णकदेववाहनदेवकिल्विषदेवनीचदेवत्रयं विहायान्येष महद्धिकदेवेषत्पद्यते सम्यग्दष्टिः। इदानों सम्यक्त्वग्रहणात्पर्व देवायष्कं विहाय ये बद्धायुकास्तान् प्रति सम्यक्त्वमाहात्म्यं कथयति । "हेछिमछप्पुढवीणं जोइसवणभवणसव्वइच्छीणं । पुण्णिदरे ण हि सम्मो ण सासणो णारयापुण्णे । १।" तमेवार्थ प्रकारान्तरेण कथयति "ज्योतिर्भावनभौमेषु षट्स्वधः श्वभ्रभूमिषु । तिर्यक्षु नृसुरस्त्रीषु सदृष्टिर्नैव जायते । १।" अथौपशमिकवेदकक्षायिकाभिधानसम्यक्त्वत्रयमध्ये कस्यां गतौ कस्य सम्यक्त्वस्य सम्भवोऽस्तीति कथयति"सौधर्मादिष्वसंख्याब्दायुष्कतिर्यक्षु नृष्वपि । रत्नप्रभावनौ च स्यात्सम्यक्त्वंत्रयमङ्गिनाम् ।१।" कर्मभूमिजपुरुषे च त्रयं सम्भवति बद्धायुष्के लब्धायुष्केऽपि । किन्त्वौपशमिकमपर्याप्तावस्थायां वाला ऐसा वीतरागसम्यक्त्व नामका धारक निश्चयसम्यक्त्व जानना चाहिये। यहाँ इस व्यवहार सम्यक्त्वके व्याख्यानमें निश्चयसम्यक्त्वका वर्णन क्यों किया? ऐसा प्रश्न करो तो उत्तर यह है कि व्यवहारसम्यक्त्वसे निश्चयसम्यक्त्व साधा ( सिद्ध किया ) जाता है इस साध्यसाधकभावको अर्थात् व्यवहारसम्यक्त्व साधक और निश्चयसम्यक्त्व साध्य है इस वार्ताको विदित करनेके लिये किया गया है। अब जिन जीवोंके सम्यग्दर्शनका ग्रहण होनेके पहले आयुका बंध नहीं हुआ है वे व्रतका अभाव होनेपर भी अर्थात् व्रत न करनेपर भी नर-नारक आदि निंदनीय स्थानोंमें जन्म नहीं लेते ऐसा कथन करते हैं । "जिनके शुद्ध सम्यग्दर्शन हो गया है ऐसे जीव नरकगति और तियंचगतिमें नहीं उपजते हैं और नपुंसक, स्त्री, नीचकुल, अंगहीन शरीर, अल्प आयु और दरिद्रीपनको नहीं प्राप्त होते हैं ॥१॥' अब इसके आगे मनुष्यगतिमें जो सम्यग्दृष्टि उत्पन्न होता है उसके प्रभावका वर्णन करते हैं। "जो दर्शनसे शुद्ध हैं ऐसे जीव दीप्ति, प्रताप, विद्या, वीर्य, यश, वृद्धि, विजय और विभवसे सहित होते हैं और उत्तम कुलवाले, तथा विपुल ( बहुत ) धनके स्वामी होते हैं तथा इन पूर्वोक्त गुणोंसे वे सब मनुष्यों में श्रेष्ठ होते हैं ॥ १ ॥' अब जो सम्यग्दृष्टि देवगतिमें उत्पन्न होवे तो प्रकीर्णक देव, वाहन देव, किल्विष देव, व्यन्तर देव, भवनवासी देव और ज्योतिषो देवोंके पर्यायको छोड़कर अन्य जो महाऋद्धिके धारक देव हैं उनमें उत्पन्न होते हैं। अब जिन्होंने सम्यक्त्वका ग्रहण करनेके पहले ही देव आयुको छोड़कर अन्य किसी आयुका बंध कर लिया है उनके प्रति सम्यक्त्वका माहात्म्य कहते हैं। "प्रथम नरकको छोड़कर अन्य छह नरकोंमें, ज्योतिषी, व्यन्तर और भवनवासी देवोंमें, सब स्त्रीलिङ्गोंमें और तिर्यंचोंमें, सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नही होता ॥१॥" अब इसी आशयको अन्यप्रकारसे कहते हैं कि "ज्योतिषी, भवनवासी और व्यन्तर देवोंमें, नीचेके छह नरकोंकी पृथिवियोंमें, तिर्यंचों में और मनुष्यस्त्रियों में तथा देवस्त्रियोंमें सम्यग्दृष्टि नहीं उत्पन्न होता है ॥१॥" अब औपशमिक, वेदक और क्षायिक नामा जो तीन सम्यक्त्व हैं इनमेंसे किस गतिमें कौनसे सम्यक्त्वकी उत्पत्ति हो सकती हैं सो कहते हैं । “सौधर्म आदि स्वर्गोमें, असंख्यातवर्षकी आयुके धारक तिर्यंच और मनुष्योंमें अर्थात् भोगभूमिके मनुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228