Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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( ओ )
समष्टिवादी धारणा जो युद्ध, आक्रमण, अधिनायकवाद एवं निरंकुशता आदि का समर्थन करता है, उसको बुद्ध के साथ जोड़ना उचित नहीं होगा ( प्रो० मुकुट बिहारी लाल ) ।
व्यक्ति और समाज की आधुनिक अवधारणा की कोटियों में विचार प्रस्तुत किये जाने पर अधिकांश विद्वानों ने बौद्धदृष्टि को व्यक्तिवादी कहा । कहा गया कि व्यक्ति के विकास या विकार की सम्भावनाएँ व्यक्ति के अन्दर ही हैं । व्यक्ति चित्त के अतिरिक्त स्वतन्त्र सामाजिक चेतना जैसी किसी वस्तु की मान्यता नहीं है ( प्रो० एस० रिम्पोछे ) । भौतिक विज्ञान की दृष्टि से भी कहा गया कि बौद्धदर्शन व्यक्ति दर्शन है उसका निर्वाण, अष्टाङ्गिक मार्ग और चार आर्यसत्य सभी व्यक्तिगत हैं यद्यपि बुद्ध के सिद्धान्त सार्वकालिक थे किन्तु उनका केन्द्र केवल व्यक्ति है । उनके अनुसार बुद्ध का दृष्टिकोण वस्तुवादी नहीं था व्यक्तिवादी था, इसीलिए उन्होंने मनुष्य को सर्वोपरि माना, और चराचर के साथ उसके सम्बन्ध की ओर ध्यान नहीं दिया ( श्री वी० के० राय ) । व्यक्तिवादी होने के कारण हा जैक्सन द्वारा बौद्धदर्शन के महत्त्व को प्रस्तुत किया गया । उनके पक्ष को समर्थित करते हुए कहा गया कि व्यक्ति को सामाजिक ढाँचे के आधार पर नहीं समझा जा सकता । इसके लिए अपेक्षित है व्यक्ति स्वरूप का चिन्तन, जो बौद्धदर्शन की विशेषता है । समाजशास्त्र द्वारा अन्तर्वैयक्तिक निरीक्षण-परीक्षण मात्र ही सम्भव है । व्यक्ति स्वरूप की अभिव्यक्ति समाजशास्त्रियों के पास नहीं है, जबकि बौद्धदर्शन की मान्यता है कि सामाजिक-सांस्कृतिक स्वायत्तता के अन्तर्गत मानव व्यक्ति की स्वतन्त्रता सम्भव नहीं है ( डॉ० राजेन्द्रप्रसाद पाण्डेय ) ।
उपर्युक्त ऐकान्तिक व्यक्तिवादी पक्षों से भिन्न एक यह पक्ष था कि व्यक्तिवाद या समष्टिवाद की ऐकान्तिकता का सिद्धान्त मूल बौद्धदृष्टि के अनुकूल नहीं है । उसके अनुसार ऐकान्तिक रूप में व्यक्तिवाद एवं समष्टिवाद बौद्धमत में मिथ्या दृष्टियाँ हैं। दोनों अन्तों का परिहार ही सम्यग् दृष्टि है ( प्रो० कृष्णनाथ ) | बौद्धों के समष्टिवादी पक्ष को पुष्ट करते हुए कहा गया कि बुद्ध की गहन मानववादी दृष्टि उनके समाजदर्शन की अन्तर्वस्तु को निर्धारित करती है ( डॉ० प्रतापचन्द्र ) | यह भी कहा गया कि मानव व्यक्तित्व के निर्माण में आंशिक रूप में भी नित्यतावाद का प्रभाव न होने के कारण बौद्ध दार्शनिकों को इसके लिए अधिक अनुकूलता है कि वे सापेक्षता के आधार पर व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों का विश्लेषण कर सकें । व्यक्ति सम्बन्धी सापेक्षता का सिद्धान्त समाज के परिवर्तनशील सम्बन्धों को आकलित करने एवं उन्हें ग्रहण करने में अधिक सक्षम है ( प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय )
बौद्धदशन वस्तुवादी एवं अवस्तुवादी सभी मुख्य दार्शनिक प्रस्थानों का विश्लेषण करके देखने से ज्ञात होता है कि व्यक्ति ओर समाज दोनों पर ही सापेक्षता का सिद्धान्त लागू है, जिसकी व्याख्या प्रज्ञप्ति, प्रज्ञप्तिसत् संवृतिसत् एवं अन्योन्याधिपतित्व आदि के द्वारा की जाती है । इस प्रकार जैसे व्यक्ति पुद्गल अन्य सापेक्ष एवं प्रज्ञप्ति
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