Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 117
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलख अरूपी अज अविनाशी, अननशक्ति मुहाया; सबका साक्षी चैतन्य चिद्घन, परापश्यंती गाया रे. प्रमु० २ चाह अचाह न त्याग ग्रहण नाहि, आपमें आप समाया; बुद्धिसागर शुद्धोपयोगे, आप प्रभु हो जाया रे. प्रभु०३ आतम!!! पीजा अमीरसप्याली. सोरठ. आतम !!! पीजा अनीरसप्याली, जेनी घेनथी जग मूलातु; प्रगटे आनंदलाली................ ....................आतमः ज्ञाननी प्याली अनुभवकाफी, प्रेममशालावाली ध्याननी अमिथकी ज उकाळी, संतयोगीजन प्यारी. आतम० १ अमीरसप्याली पीतां खुमारी, प्रगटे न उतरी उतारी; जन्ममरणनां स्वम टळे सहु, प्रेमे पीवो नरनारी. आतम०२ आनंदांतिनी घेन चढे बहु, निर्मळदिल अजवाळी बुद्धिसागरमस्तफकीरी, ब्रह्मखुदाइ निहाळी. आतम०३ संतो!!! आतमरूप समरना. आशावरी. सैतो! बातमरूप समरना, मायासेहै जन्म रु मरणा; निजउपयोगे तरना..... ............संतो. कालका काल महाकाल तुं, तेरा न जन्म रु मरणा: निश्वयनयसें बंध न मुक्ति, अंतर्दृष्टि धरना. संतो०१ आतमरूपका ज्ञान विना कबु, पिटत नहीं मोहभ्रमणा; ज्ञान विना सबसाधन निष्फल, लाखचोराशीमें फिरना. संतो० २ आपोआपकुं जानो संतो, भवसागरकुं उतरना; बुद्धिसागर अलख निरञ्जन, परमातमपद वरना. संतो०३ For Private And Personal Use Only

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