Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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धर्मांनी व्हारे आर्यों चढ़ता, धर्मार्थे त्यजे पाणरे धर्मीने धिकारे अनार्यों, वैरी मूर्ख अजाणरे. गुण० २४ ज्ञानयोगी कर्मयोगी ने भक्तो, वीतराग छे आयरे; जन्मथी आर्य अनार्यपणु नहीं, गुणथी छे आर्यत्व धार्यरे-गुण०२५ मेसाणामां चोमासुं करी, अव्योत्तरनी सालरे; श्रावणपूर्णिमा दिवसरचना, करतां मंगलमालरे. गुण. २६ आर्यपणानां सद्गुणको, धारो नरने नाररे; बुद्धिसागरप्रभुपद पामो, वर्ते जयजयकाररे. गुग० २७
योगस्वरूप. संतो देखीएरे परगट पुदल जाल तमासा. योगनां लक्षणोरे जाणी परमयोगीपद वरशो; समज्यावण गाडरिया चाले, वर्ते योग न धरशो. योगनां० १ परमातमपद बरवामाटे, साधनधर्म व्यापारो, समकितपूर्वकधर्मप्रवृत्ति, योगशब्द व्यवहारो. योगनां० २ रागने रोषे बाह्यविषयमां, प्रगटे जे चित्तवृत्ति; तेवी सर्वे चित्तनी वृत्ति, रोधे योगनी शक्ति. योगनां०३ कर्मप्रकृति बंधन सघळां, तेथी मुक्त थवाने; इहायोगर्नु बीज विचारो, शुद्धस्वरूप मळवाने. योगनां०४ भातम ते परमातम पोते, सत्ताए छ साचो; प्रगट थवानां तेनां कारण, योग छे तेमां राचो. योगनां० ५ भातमने परमातम करवा, मनवचकायप्रवृत्ति ज्यवहारे थाती ते जाणो, निमित्तयोगनी वृत्ति. योगनां०६ मनवाणीकायायी पंच-महाव्रतोतुं धरव पमनियमादि आठे अंगो, योगर्नु लक्षण वरवं. योगनां०७
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