Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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तिरोभावनो आविर्भाव झा, उपादान छे योग: शुद्धगुणो पर्यायो करवा, अंतरंग उपयोग. योगना०८ उपशम क्षयोपशमने क्षायिक-, भाव ते योग प्रमाणो कवियोगे आतमगुणना, योगे योग ज जाणो. योगमांक ९ साकारप्रभुना ध्याने रहेQ, योग सालंबन मोटो निराकारप्रभुना उपयोगे, कदि न आवे तोटो. योगनां० १० असंख्यप्रदेशी आत्मस्वरूपर्नु, शुक्लध्यान जयकारी; निरालंबनयोग ते मोटो, पामे शिवसुख भारी. योगमा० ११ मतिश्रुतज्ञानना उपयोगे जे, तत्वस्वरूप विचारेः संप्रज्ञात समाधि पामे, तेम सविकल्प ज धारे. योगनां० १२ स्थूल तथा सूक्ष्म ज बे भेदे, शुभादिक परिणाम क्षयोपशमी सविकल्प समाधि, असंख्यभेदने पामे. योग० १३ सिद्धादिक अवलंबनयोगे, आतमशुद्धि थाली आतमनुं परमातम थावं, योगनी ए प्रख्याति. योग०१४ काल अनादिकमेनी साथे, आतम छे परिणामी शुद्धभावमां आतम प्रणमे, योग छे आतमरामी. योग० १५ अनंत ज्ञानानन्दमयी छे, आतम शुद्धस्वभावे; कर्म खरतां ज्ञानानन्दनी-, व्यक्तियोग मुहावे.. योग०१६ मनमां मोहनी वृत्ति प्रगटे, तेनो रोष जे करवोः द्रव्यमाक्सनविरहित आतम, आवियोग ते घरवो. योग०१७ त्रण्यगुप्तिने पांचसमिति, उत्सर्गे अपवादे पंचाचार ते साधनयोग ज, पडो न वादविवादे. योग०१८ देवगुरुमुनिधर्मसंघनी, सेवाभक्तिपत्ति आस्रवनी निवृत्ति योग ज, नियमशौचनी रीति. योग० १९ नयव्यवहारथकी जे योग ज, असंख्यभेदे जाणो; मनोवृत्ति शुभपरिणामादि-, भेदे असंख्य मानो. योग० २०
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