Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 187
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ राज्यतणां सहु अंगनुं ज्ञान, जाणे परमार्थे दे माण न्याये धननो संचय करे, राष्ट्रनी नीतिथी संचरे. अन्यमजानां दुःखविनाश, करवामां पामे उल्लास; जुल्म अनीति सहे न लेश, करे न मांहोमांहे क्लेश. मांहोमiहे करे न फूट, चोरी झारी करे न लूंट; राजानी आज्ञा स्वीकार करता फर्जे नरने नार. करे न राजानुं अपमान, न्यायीदंड सहीले जाण; पक्षपातथी रहेता दूर, प्रगटावे आतमनुं नर. प्रजासंघनुं धारे एक, त्यागे नहि नीतिने टेक; राज्योन्नति कर्मों करनार, धरी व्यवस्था जीवे सार. दुहा. प्रगटावी सहु शक्तियो, वापरे धर्मने हेत; शक्तिविनानुं जीव, घणी विनानुं खेत दया सत्यने दमथकी, दानथी चडती थाय; न्याय संपने ज्ञानथी, प्रजासंघ सुख पाय. अन्यत्रजाओने गणे, निज आतमसम जेह; ज श्रद्धाप्रीतिथकी, मजा बने गुणगेह. दुर्गुण दोषो टाळती, करे धर्मनां काज; दुष्टव्यसनथी वेगळी, लहे प्रजा साम्राज्य. करे न हिंसा मोहथी, धरे न पापाचार; सदाचारथी उन्नति, पामे नरने नार. द्रव्य क्षेत्रने कालथी- भावधी योग्य जे कृत्यः स्वाधिकारे जे करे, पामे प्रगति सत्य. For Private And Personal Use Only ५ ६ १० ११ १२ १३ १४

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