Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 191
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सापेक्षाए सर्वविचार, आचारो धरती हुशियार; सर्वव्यवस्थाथी वाय, प्रजा एहवी चडती पाय.. दुःखीओने आपे स्हाय, अन्याये लक्ष्मी नहि च्हाय; मैत्रीप्रमोदने करुणाभाव, मध्यस्थे धारे सद्भाव. विषयोमा मुंशाती नहीं, प्रजा पुष्टिने पामे सही; आतमवादविषे मश्गुल, जडप्रवादथी रहेती दूर. सापेक्षाए सर्वे धर्म, जाणे सापेक्षाए कर्म; सापेक्षाए दर्शनपन्थ, जाणी बहेती आतमपन्थ. अल्पदोषने धर्म महान् , करे कार्य एवं हित जाण; धूम्राव्रत अग्निनी जेम, सदोष सर्व प्रवृत्ति तेम. करे प्रत्ति फर्नथी जन, शुद्धातममा राखे मन प्रजा एहवी ज्ञानी ज्यांय, शांतिमुखनिवृत्ति त्यांय. जीवे आतमशुद्धिहेत, सापेक्षाए सहु संकेत; अनेकांत विचाराचार, माने निश्चयने व्यवहार. माने असंख्ययोगे मुक्ति, असंख्यनयसापेक्षे युक्ति जाणे ज्ञानी प्रजा गणाय, घट घट परमातम परखाय. आतम ते परमातमसिद्ध, मोह टळ्याथी व्यक्तप्रसिद्धः बाबाराज्य साधन ते माट, साधे भूप प्रजा शिरसाट, बाथराज्य, साधन छे जाण, ब्रह्मगज्य साध्य ज छे मान; आत्मराज्यमां जीव्युं जाय, बाह्यराज्यमां शांति थाय. सापेक्षे ज्यां एबुं ज्ञान, पक्षापक्षी न ताणाताण; अंतर्मा वर्वे समभाव, कार्य करे निर्लेपस्वभाव. प्रजा भली एवी ज्यां होय, राजा पण त्यां सारो जोय: • प्रजासंघनुं प्रगटे जोर, मोहराजनो थाय न शोर. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198