Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 186
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समजावे जगने मुज सत्य, परोपकारी करतो कृत्य मनुष्यजाति करवा उद्धार, शम दम संयम तप गुणधार. १०२ एवा संघनी प्रगति थाय, निजभूलो टाळी हर्षाय; करे गुलामीनां नहि कर्म, जैनसंघ, ए छे मर्म. १०३ राजमजादिकपर उपकार, करवा स्वार्पण करतो सार; असत् कदाग्रह त्यागे जेह, निजभोगे थावे वैदेह. १०४ द्रव्यक्षेत्रकालानुसार, उत्सर्ग अपवाद विचार; संघनां कृत्यो करतो संघ, पामी श्रद्धा टेक उमंग. दर्शन ज्ञानचरण तप धार, संघ चतुर्विध जगजयकार; स्वाधिकारे सहु कर्तव्य, यथाशक्ति व्यक्ति मंतव्य. कर्तव्यो ए संघनां कह्यां, ज्ञानीओए दिलमां वह्यां; समजी वर्तो नरने नार, पामो शांति पुष्टि अपार. १०७ प्रभुमहावीर साचो बोध, आदरतां छे मोहनो रोध; बुद्धिसागर मंगलमाल, सकलसंघमां जयजयकार. १०५ प्रजासमाजकर्तव्य ग्रन्य. चोपाइ. परमेश्वरमहावीरजिनेश, श्रेणिकने देवे उपदेश प्रजासमाजनुं सत्यस्वरूप, प्रजा न पामे जाणी धूप. भूपति गुरुजन वृद्धनुं मान, मातपितानुं बहु सन्मान; अरस्परसपर बहु उपकार, सेवा भक्ति कर्म विचार. अरस्परसना रक्षणहेत, तनधनसत्ताना संकेत धर्मार्थे वपरातुं सर्वे, गारव पामे थाय न गवे. For Private And Personal Use Only

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