Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शोक. २९ शोक० ३० शोक० ३१ शोक. ३२ शोक० ३३ १३९ देह सगाइ छ मोही, ज्ञाने आत्मसगाइ, जेह सगाइ जाणे नहीं, तेनी शी छे सगाइ. मोहने स्वार्थे सगाइथी, जगमां न वडाइ; रो, सगांने स्वार्थथी, नरी ए मूर्खताइ. देहसंबंधे जे सगां, जडमोहे ते भूल्यां; आत्मसंबंधे जे सगां, निर्मोही अमूलां. देहसगां देह त्यां सुधी, पछी संबंध जूठा; क्षणिकसंबंधे मुंझीने, अरे थाओ न बूठा. जन्म जरा ने मरण छ, त्रण्य देह अवस्था; देहभावे नहीं परिणमो, थाओ ज्ञाने सुस्वस्था. जेवी संध्याने वीजळी, जलना परपोटा; संसार संबंध तेहवा, क्षणनाशी खोटा. मनमां शोक न धारीए, वारीए मोहमाया: मानवभवने न हारीए, चेतो चेतो भाया. आतमना उपयोगथी, ध्यावो आतमराया; मातम ते परमातमा, ज्ञानानन्द सुहाया. बीजी देशी. मा संसार असार छेजी, आतम धर्म के सार; कोइ न साथे आवतुंजी, रागने रोष निवाररे साचुं मातमतत्त्व विचार, जगमां के ए साररे. पुण्यपापकों कर्याजी, परभव आवेरे साथ; पुण्ये सुख पापोदयेजी, प्रगटे दुःखनो क्वाथरे. पुण्योदयथी धर्मनीजी, सामग्री मळे बेश; पापोदयथी दुःखनीजी, सामग्री महाक्लेशरे. शोक० ३४ शोक० ३५ जोक. ३६ साचु० ३७ सामु. ३ साचुं० ३९ For Private And Personal Use Only

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