Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ चोपाइ. आयुष्य प्रगटेने विणसाय, तेमां हर्ष न शोक न थाय; आतमभावे थाय प्रसन्न, सर्व करे पण मुजमां मन. शरण मारुं जे नरनार, करतां ते उतरे भवपार; देह त्यजतां करे न शोक, कदि न पाडे मोहे पोक. श्वासोच से मारुं ध्यान, करतां प्रगटे साचुं ज्ञान, श्वासोच्छासे मारो जाप, जपतां कोइ न लागे पाप. छेवट मृत्युकाले जेह, शरण करे मुज ते वैदेह; अनंतभवनां कर्म विनाश, मुज शरणे मुक्ति छे खास. अज अविनाशी नित्य अनंत, काल अनादि पूर्ण महंत; आतम ते परमेश्वर वीर, सत्ताए महावीर ज धीर. आतम महावीर शरणुं करे, मन निर्मल थै आतम ठरे; षटकारक शुद्धां प्रणमाय, आतम ते परमातम थाय. आतमभावे जे हर्षाय, अठकर्मोथी बंध न पाय; मरनारामां देखे तेह, अमर आतमा ते वैदेह. देहछतां वैदेह थाय, मुजभक्तोने काल न खायः लहे नहीं दुर्गतिमां वास, आयु जतां आनंदोल्लास. स्वाधिकारे करता कर्म, करे निर्जरा पामे धर्म; स्वाधिकारे सहु व्यवहार करता शिव पामे नरनार. देह मरे पण मरे न तेह, मृत्युकाले भीति न रेह; निर्भय थैने छंडे प्राण, मुजभक्तो पामे शिवस्थान. मुज विश्वासी जे नरनार, पूरण माराउपर प्यार; महापापी पण शिवपद पाय, छेवटकाले पण मुन ध्याय, सर्वनीवोना नारण हेत, तीर्थकर मुजभव संकेत; समजी वर्ती नरने नार, निर्लेप करशो व्यवहार. For Private And Personal Use Only

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