Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आचारो तो फरता रहे, देशकाल अनुसारे वहे; . तत्त्वोमा कदि थाय न फेर, ज्यां अज्ञान ज त्यां अंधेर. काल अनादि तत्त्व न फेर, आचारोमां थाय ज फेर; देशकाल शक्ति अनुसार, परिवर्तन पामे आचार. . संघ सकलमां नयसापेक्ष-,मतभेदे नहीं करवो क्लेश; समभावे सहु संघनी मुक्ति, मुज भजतां नहीं मोहनी रीति. २० विद्याज्ञानने शक्तिप्रचार, करतो संघ वधे जयकार; दुर्गुण दुष्टव्यसनथी दूर, रहेता संघ वधे भरपूर. खमे खमावे माहोमांद्य, मनमां वैर न राखे क्यांय; संघार्थे आपे निज भोग, नीतिथी शक्तिनो योग. उदार गंभीर न्यायाचार, अरस्परसमां प्रेम अपार; शक्ति छतां सहतो अपराध, संघ सदा एवो आराध्य. परोपकारे निशदिन रक्त, सेवाभक्तिमां आसक्त; उपदेश्यां मुज समजे तत्व, सत्वगुणीने उत्तम सत्त्व. निज निज अधिकारे गुण कर्म, करवामां समजतो धर्म एवा संघर्नु धार्यु थाय, आध्यात्मिकप्रगति ते पाय. अन्यजीवोपर राखे रहेम, धर्मीजीवोपर धारे प्रेम संपीने वर्ते थै एक, सर्वकार्यमां होय विवेक. अधर्म्ययुद्धने त्यजता छेक, देवगुरुसेवानो टेक; पशुपक्षीनी हिंसा त्याग, साधर्मिक उपर बहुराग, जूल्मी दुष्टनी सहामा थाय, रहेवा दे नहि जूल्म अन्याय; करे अतिथि बहु सन्मान, दिल प्रगदावे आतमज्ञान. सर्वलोकने देतां ज्ञान, करे नहीं दिल्मां अभिमान; आतम ते परमातम जाण, सास्विकबुद्धि नहि अज्ञान. ___२९
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