Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आत्मप्रेरित.
- आशावरी, आतम ! आतमप्रेरित सुणजे, परापश्यंतीभासित प्रेरित करजे वीजु परिहरजे.... .... .... ....आतम० मनवचकायनी गुप्ति करीने, अंतरध्वनि सांभळजे; अंतरमा प्रभुना पयगामो, प्रगटंता मन घरजे. आतम०.१ अंतर प्रगटित ज्ञानवेदान्तो, आगमो साचां फळशे; शुद्धबुद्धियी आतमशुद्धि, अनंत आनंद मळशे. आतम० २ ध्यानसमाधि पछी आतममा, ज्ञान ते प्रगटी नीकळशे; बुद्धिसागरपरमेश्वर दिल, ज्योतिर्मय झळहळशे. आतम० ३
....आवम०
बातम ! आतमधर्म छे त्हारो.
सोरठ. आतम ! आतमधर्म छेत्हारो, आतमधर्म प्रगट करवामां; आतमशुद्धिने धारो .... . रागरोष काम अज्ञान टळतां, प्रगटे ज्ञानाचारो; समभावे सहुधर्ममां मुक्ति, दर्शनमोहने मारो. आतम० १ सर्वप्रकारे मोह टळे तो, आतमशुद्धि अपारो, आतमशुद्धिमां मुक्ति समाइ, धर्म न निजथी न्यारो. आतम० २ धर्मना लाखो मतिभेदो छते, संशय खेद न धारो; रागद्वेषने हिंसाटाळो, धर्म प्रगटशे सारो. आतम० ३ अहिंसा संयम तप साधो, करशो पर उपकारोः धर्मना मोहे धर्म न प्रगटे, धर्मनो मोह निवारो. आतम०४ मननी मान्यता धर्म विचारो, फरता असंख्यात वारो; आतमधर्म ते ज्ञानानन्द छे, प्रगटावो घट प्यारो.. आवम०५
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