Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आतम ज्ञानानन्द प्रगटता, कस्तां शांति अपारो; सात्विक साधन धर्मथी न्यारो, आतमधर्म विचारो. आतम०६ तर्कना वाद विवाद करतां, आवे न धर्मनो आरो; रागद्वेष टळ्यावण धर्मनां-शास्त्रो भणे नहीं पारो. आतम०७ प्रथम दुर्गुण व्यसन निवारो, ममता अहंता टाळो; सात्विक जल भोजन आहारो, पवित्र धरो आचारो. आतम०८ एकदेशीयविचार निवारो, सर्वदेशी ल्यो विचारो; सर्वजीवोने आतमसरखा, गणी धरो शुद्धप्यारो. आतम०९ मनवयकायथी पाप निवारो, निष्काम पुण्याचारो, आतम अनुभवज्ञान प्रगटशे, आनंद अपरंपारो. आतम. १० प्रभुमहावीर गुरुकृपाए, घटमां थयो उजियारो बुद्धिसागरआतमधर्म छे, चिदानंद निर्धारो. आतम० ११
धर्मी थवाने लायक सद्गुण मेळवो. ओधवजी सन्देशो कहेशो श्यामने. ए राग. सर्मी थवाने लायक सद्गुण मेळवो, सद्गुण सत्यक्रियाथी मुक्ति थायजो; उत्साही बनशो पहेलां नरनारीओ, उद्योगी प्रेमी बनतां दुःख जायजो प्रगतिजीवनमा उत्साहे आगळ घसो. .... ....१ खुशमीजाजे आयुष्य वहेवू ज्ञानथी, थतां पराजय कदि न तजवं धैर्यजो खतने टेकथकी आगळ घसता रहो, संकट पडतां प्रगटावो दिलशौर्यजो; कर्मथी पडतां पण दिलथी चढता रहो.... .....२
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