Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम० ६ आतम०७ १२२ मागण पेठे माग न आतम !! ! मागणवृत्ति नठारी; रत्ननुं मैदिर झुपडी बेमां, समभावे सुखक्यारी. अहंममता आशारहित मुनि, अनंत सुख अधिकारी; तनमनधनमूर्छा उतरतां, जीवंतां मुक्ति सारी. महीजलअग्निवायुने नभथी, तुं मोटो निर्धारी; ताहरी तले कोइ न आवे, तनुदेवळ प्रभु भारी. शुद्गलोंठ अनंती वेळा, खाधी पीधी अपारी; तेथी वृप्ति लेश थइ नहीं, समज समज सुखकारी, अनंत ज्ञानानन्दनी ऋद्धि, प्रभुता गणीले प्यारी; नामरूपनो मोह त्यजीदे, घटमां प्रभुता लें भाळी. सर्वपुद्गलमा निःसंग रहेवू, आतमरूप विचारी; बुद्धिसागर आतमराजा, विश्वप्रभु बलिहारी. आतम०८ आतम० ९ आतम० १० आतम० ११ कुर्बानी ने होम पशुवध संबंधी उपदेश. ओधवजी सन्देशो कहेशो श्यामने. ॥ अल्लाने खावापीवान नहीं कशु ? नित्य निरंजन नूर छे अपरंपारजो; पशु मार्याथी तेना नामे ते कदी, खुश थतो नहि नाखुश नहि तलमारजो पक्षपात त्यागीने सत्य विचारशो.... ........१ अल्लाने पशुभक्षणनी इच्छा नथी, खावु होय तो स्वयंग्रहीने खायजो ए, तो ममजाय नहीं मतपक्षमां, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198